बीता विधानसभा सत्र ‘विरोध सत्र’ के रूप में ही दर्ज रहा। सबने बढ़चढ़कर शिरकत की। उपराज्यपाल के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर कुछ लोग पार्टी की नजर में खुद को दमदार जताने में लगे थे। हो भी क्यों नहीं सारे मंत्री लोग भी मौजूद थे ही। लेकिन इस दौरान सदन में एक विधायक महोदय अपनी करनी से खुद को झेंपते नजर आए। हुआ यूं कि उपराज्यपाल महोदय के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और लंबे समय नारे लिखे इस्तीफे की मांग वाली तख्ती उल्टा पकड़े हुए थे।

वे अन्य के बेल में पहुंच उपराज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी करने में मशगूल थे। उनकी करनी पर कुछ लोग हंस रहे थे तो कई मजे भी ले रहे थे। इतने में पार्टी प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज की नजर पड़ी, उन्होंने मामला संभाला ! वे पास पहुंचे और विधायक सुरेंद्र कुमार की तख्ती को सीधा किया। बस क्या था, विधायक महोदय को बात समझ में आ गई। बात समझ आते ही वे सीट की तरÞफ बढ़ चले। शायद उन्हें लग गया था कि लोग उनके ‘कथन’ पर नहीं बल्कि उनकी ‘करनी’ पर हंस रहे थे।

मुद्दों से परहेज

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए पार्टी ने जिस मुद्दे के खिलाफ सड़कों पर उतर कर हल्ला बोला और आम जनता के बीच लेकर गई, अब उसी मुद्दे को लेकर सत्ता का सुख भोग रही पार्टी विपक्ष के निशाने पर है। भ्रष्टाचार के आरोप में पार्टी के एक मंत्री को जेल तक जाना पड़ा। दूसरे कद्दावर मंत्री पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। अब तीसरे मंत्री के खिलाफ जांच के आदेश दिए जा चुके हैं।

आज तक जो पार्टी का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहा था वही मुद्दा उनके लिए जी का जंजाल बन गया है। लेकिन पार्टी की ओर से इन मुद्दों पर परहेज करने की रणनीति दिख रही है। पार्टी की ओर से प्रवक्ताओं की एक फौज तैयार की गई है जो देशभर के मुद्दों पर बोलने के लिए हर दिन मीडिया के सामने आते हैं। लेकिन मुद्दे की बात ये है कि वे असल मुद्दों पर न बोलकर तरह-तरह के दस्तावेज पेश करते हैं।

नौकरी नहीं मौज

गौतमबुद्ध नगर के तीन औद्योगिक विकास प्राधिकरण की चकाचौंध किसी से छिपी नहीं है। जहां प्रदेश के अन्य औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में उच्च पदों पर बैठने वाले इंजीनियरों और अधिकारियों तक को सरकारी गाड़ी की सुविधा नहीं है। वहीं नोएडा, ग्रेनो और यीडा प्राधिकरण में कमतर पद वालों को भी तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसी के चलते यहां पर नौकरी की चाह रखने वालों की भी लंबी फेहरिस्त है।

चूंकि स्थायी नौकरी लगना संभव नहीं होने से प्राधिकरणों में संविदा पर नौकरी के लिए कुछ भी करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। दीगर है कि अभी तक एक बार संविदा पर लगने वाले स्थायी की तर्ज पर सेवानिवृत्त होने तक काम करते रहे हैं। आलम यह है कि अब पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री से लेकर प्राधिकरण और शासन स्तर तक कार्यरत अधिकारी अपने चहेतों को यहां संविदा पर लगवाने की जुगत में जुट गए हैं। इसका लाभ क्या है कोई इन्हीं से पूछे, बेदिल तो सुनकर हैरान ही रह गया।
-बेदिल