केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों के कालेजियम के बीच एमओपी के प्रारूप पर सहमति नहीं बनने से उच्चतर न्यायपालिका में जजों के खाली पदों की संख्या लगातार बढ़ी है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर कई बार चिंता जता चुके हैं।अब विधि मंत्रालय के आंकड़े भी दर्शाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में भी जजों के तीन पद खाली पड़े हैं। जबकि देश के छह हाई कोर्ट बिना नियमित मुख्य न्यायाधीश के काम कर रहे हैं।
इसी तरह विभिन्न उच्च न्यायालयों में भी जजों के 478 पद खाली हैं। आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, मध्यप्रदेश, मणिपुर, सिक्किम और त्रिपुरा में एक अगस्त तक पूर्णकालिक मुख्य न्यायाधीश नहीं थे। 24 हाई कोर्ट 601 जजों के साथ काम कर रहे हैं, जबकि उनकी स्वीकृत क्षमता 1079 है। फिलहाल 478 जजों की कमी है। जजों की यह कमी ऐसे समय में है, जब इन अदालतों में तकरीबन 39 लाख मामले लंबित हैं। सरकार ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों में जून 2014 में जजों की स्वीकृत क्षमता 906 थी। जो इस साल जून में बढ़ कर 1079 हो गई।
न्याय प्रदान करने की व्यवस्था के चरमराने की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों और दूसरे जजों के तबादले और नियुक्ति के संबंध में कॉलेजियम के फैसलों को लागू नहीं करने पर कड़ा रुख दिखाया था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि न्यायपालिका अवरोध बर्दाश्त नहीं करेगी और सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए हस्तक्षेप करेगी। खाली पदों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि केंद्र कॉलेजियम के फैसले के अनुसार जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण नहीं करके न्यायपालिका को ठप करना चाहता है।
कॉलेजियम की जो प्रमुख सिफारिश सरकार के पास लंबित है, उसमें उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ का आंध्र प्रदेश, तेलंगाना हाई कोर्ट में तबादला करने को लेकर है। यह सिफारिश मई की शुरुआत में की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत क्षमता प्रधान न्यायाधीश समेत 31 है। यहां भी इस समय तीन रिक्तियां हैं।
