उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलश यादव की सरकार अपने ड्रीम प्रोजेक्ट लायन सफारी के शेर कुबेर को बचा नहीं पाई है। शेर को छुतही बीमारी कैनाइन डिस्टेंपर होने पर 1000 से अधिक आवारा कुत्तों का टीकाकरण भी किया गया था। लायन सफारी में यह नौवें शेर की मौत है। इस मौत के बाद अखिलेश सरकार की सपनीली योजना पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

लायन सफारी के उपनिदेशक डॉ अनिल कुमार पटेल ने यहां बताया कि कुबेर ने गुरुवार सुबह 8.10 पर दम तोड़ दिया। उसे बचाने की भरसक कोशिशें नामक रही हैं। शेर कुबेर 16 अप्रैल से कैनाइन डिस्टेंपर नामक बीमारी से ग्रसित था। सफारी में लगातार हो रही मौतों के कारण सीएम के प्रोजेक्ट के खटाई में पड़ने की आशंकाएं बन रही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश की कोशिश थी कि लायन सफारी को अक्तूबर में आम लोगों के लिए खोल दिया जाए।

शासन ने बुधवार को ही वन्य जीव प्रतिपालक रूपक डे को शेरों की देखभाल के लिए सफारी तक सीमित कर दिया था। कुबेर के शव को बरेली स्थित आइबीआरआइ केंद्र भेज दिया गया है। वहां पर इसके शव का पोस्टमार्टम किया जाएगा। इसलिए कुबेर के शव को बड़े ही सुरक्षात्मक तरीके से बरेली ले जाने का प्रबंध किया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 12 अप्रैल को सैफई में पर्यटन परिसर की आधारशिला रखने के दौरान लायन सफारी में शावकों और शेरों की मौत को लेकर अपनी वेदना व्यक्त की थी।

संसदीय चुनावों के दौर में गुजरात के गिरनार से लाए गए तीन शेरों के जोड़े चुनावी मुद्दा भी बने थे। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपा सुप्रीमो को चुनौती दी थी कि वे गुजरात के शेरों को कैसे रख सकेंगे, वह आज सच नजर आ रहा है। विष्णु व लक्ष्मी की मौत ने मोदी के दावों को हवा दी। इसके बाद पांच शावकों और एक शेरनी तपस्या की मौत ने सबको हिला कर रख दिया। सब कुछ सामान्य होता हुए दिखने लगा तो फिर से शेर कुबरे की मौत ने चिंता को और बढ़ा दिया है।

राज्य सरकार ने बब्बर शेरों को संरक्षित करने के लिए विश्व स्तर की वृहद कार्ययोजना तैयार कर लायन सफारी का विस्तार किया था। लेकिन लगता नहीं है कि यह योजना पूरी हो पाएगी। दरअसल यह एक ऐसा ख्वाब है जिसे इटावावासियों ने ही नहीं बल्कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में और उसके बाद उनके बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अपने सपने में शामिल किया। यह ख्वाब आज बिखरता नजर आ रहा है। लायन सफारी को विश्वस्तरीय स्वरूप देने की तमाम व्यवस्थाएं तो सरकार ने अपने खर्चों पर कीं, परंतु यहां का वातावरण शायद बब्बर शेरों को रास नहीं आ रहा है।

शेरों की देखरेख के लिए न सिर्फ देश के नामचीन वन्यजीव चिकित्सकों की मदद ली जा रही है बल्कि विश्व स्तर पर भी राय-मशविरा लिया जा रहा है, परंतु सब कुछ बेकार ही नजर आ रहा है। ऐसे में अब लायन सफारी प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। वजह है कि जब तक लायन सफारी में कम से कम 10 शेर नहीं होते हैं, तब तक केंद्रीय चिड़ियाघर अथारिटी इसे धरातल पर स्वीकार नहीं कर सकेगी। हालांकि प्रदेश सरकार इसे दुनिया के नक्शे पर लाने का सपना संजोए हुए है। गिर के दोनों शावकों की बारी-बारी से मौत के बाद गिरज्मा ने एक साथ तीन शावकों को जन्म दिया। लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर शेरनी तपस्या की मौत हो गई।

इसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इटावा के लायन सफारी पार्क के बीमार शेर-शेरनियों के लिए ब्रिटेन की लौंटलीट सफारी के विशेषज्ञ डॉ क्रेकनन जौनाथन की मदद ली। वे अपनी टीम के साथ यहां आए और उन्होंने शेरों को कसरत भी करानी शुरू की। सफारी प्रशासन ने शेरनी तपस्या की मौत से पल्ला झाड़ लिया था। इसी कारण राज्य सरकार ने जांच शुरू करवाई। लेकिन अभी तक जांच रिपोर्ट सामने नहीं आई है। इस समय सफारी में गीगो, गिरज्मा ,मनन, हीर, पटौदी और जेसिका नाम शेर-शेरिनयां ही बचे हैं। इनसे लायन सफारी के भविष्य की पतवार आगे बढ़ने की उम्मीद है।