बेंगलुरु में एक कन्नड़ समर्थित संगठन ने शहर में विज्ञापनों और साइनबोर्डों में अंग्रेजी भाषा के इस्तेमाल का विरोध किया है। संगठन ने विरोध करने के लिए बुधवार (27 दिसंबर) को विभिन्न होर्डिंग्स को तोड़ दिया। कर्नाटक रक्षणा वेदिके (KRV) के एक धड़े ने सदाहल्ली टोल गेट से शहर की ओर मार्च निकाला। साथ ही कई व्यापारिक केंद्रों पर विरोध प्रदर्शन किया गया। बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर बी दयानंद ने कहा कि 10 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 53 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार और न्यायिक हिरासत में भेजे गए लोगों में केआरवी अध्यक्ष टीए नारायण गौड़ा भी शामिल हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए शहर के कई निवेशकों और व्यापारियों ने कानून व्यवस्था की स्थिति और व्यवसायों और दुकानों पर हमलों के बारे में चिंता जताई।

बेंगलुरु के होर्डिंग्स पर अंग्रेजी के इस्तेमाल का विरोध क्यों हो रहा है?

केआरवी ने शहर भर के साइनबोर्डों में 60 प्रतिशत कन्नड़ को अनिवार्य करने वाले बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) के आदेश को लागू करने के लिए बेंगलुरु में सभी प्रतिष्ठानों के लिए समय सीमा निर्धारित की थी। ऐसे आदेश समय-समय पर जारी किये जाते रहे हैं।

BBMP ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा गया कि शहर के सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को 28 फरवरी 2024 से पहले प्रमुखता से कन्नड़ में साइनेज लगाना होगा। BBMP ने कहा कि बेंगलुरु में 1,400 किमी लंबी मुख्य सड़कें हैं और सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का सर्वेक्षण किया जाएगा। उसने कहा कि नियम का पालन नहीं करने वालों को नोटिस दिए जाएंगे।

कन्नड़ विकास प्राधिकरण (KDA) ने 2018 में बीबीएमपी अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी और 60 प्रतिशत नेमप्लेट राज्य भाषा में नहीं लगाने वाली दुकानों का लाइसेंस रद्द करने का निर्देश दिया था। हालांकि निर्देश प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया।

आदेश सरकार की 1986 की सरोजिनी महिषी रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि सभी नेमप्लेट पर 60 फीसदी नेमप्लेट पर कन्नड़ लिखा होना चाहिए, जबकि बाकी 40 फीसदी किसी अन्य भाषा में हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य को कर्नाटक में कन्नडिगाओं के लिए अधिक नौकरियां सुनिश्चित करनी चाहिए लेकिन इसके सुझावों पर भी अमल नहीं किया गया।

लेकिन ये मामला अब क्यों सामने आया है?

साइनबोर्ड में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं को लेकर जारी मुद्दा कई कन्नड़ समर्थक संगठनों की लंबे समय से चली आ रही मांग रही है। पिछले हफ्ते भी कन्नड़ संगठनों ने शहर के चिकपेट इलाके में इस मांग को लेकर जुलूस निकाला था। हाल ही में कन्नड़ समर्थक समूहों ने राज्य में कन्नड़ लोगों को दरकिनार किए जाने पर अभियान चलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है।

हाल ही में पब्लिक सेक्टर के बैंकों में गैर-कन्नड़ भाषी कर्मचारियों (विशेषकर हिंदी पट्टी के कर्मचारियों) की उपस्थिति के कारण राज्य के कुछ हिस्सों में तनाव पैदा हो गया है। हिंदी के प्रयोग को लेकर ग्राहकों और अधिकारियों के बीच कुछ तकरार की भी खबरें आई हैं। इसके अलावा राज्य से संचालित होने वाले अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में नियुक्त नए कर्मचारियों की सूची में केवल कुछ स्थानीय लोगों को शामिल किया गया है, जिससे प्रवासियों के खिलाफ भावना बढ़ गई है।

दक्षिणी राज्य में ‘हिंदी थोपने’ के दावों ने स्थिति को और खराब कर दिया है। KRV ऐसे मुद्दों पर आंदोलन में सबसे आगे रहा है, जिसका आदर्श वाक्य है ‘कन्नड़ जाति है, कन्नड़ धर्म है और कन्नड़ भगवान है’। यह राज्य के कुछ हिस्सों, विशेषकर बेलगावी में राजनीतिक प्रभाव रखता है।

राज्य सरकार की क्या है प्रतिक्रिया?

केआरवी अध्यक्ष टीए नारायण गौड़ा ने दावा किया है कि उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार से बात की है। उन्होंने कहा, “उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि विरोध प्रदर्शन की अनुमति दी जाएगी। अगर वे हमें गिरफ्तार करते हैं या आंदोलन रोकते हैं, तो बेंगलुरु में किसी भी अप्रत्याशित घटना के लिए पुलिस जिम्मेदार होगी। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा, “बेंगलुरु में रहने और व्यवसाय करने वालों के लिए एक कानून है जो कहता है कि साइनेज में 60 प्रतिशत कन्नड़ होनी चाहिए। सभी को इसका पालन करना चाहिए।”

हिंसा के एक दिन बाद सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए एक अध्यादेश लाएगी कि साइनबोर्ड पर 60 प्रतिशत जगह कन्नड़ को समर्पित है, और बाकी अन्य भाषाओं के लिए छोड़ी गई है। सिद्धारमैया ने गुरुवार को इस मुद्दे पर कन्नड़ और संस्कृति विभाग और नागरिक निकाय के अधिकारियों के साथ बैठक की और कहा, “कर्नाटक में कन्नड़ सर्वोच्च है और सरकार भाषा को बढ़ावा देने के लिए सभी कदम उठाएगी। इस बीच हम किसी को भी कानून हाथ में नहीं लेने देंगे। हम उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करेंगे।”

प्रस्तावित अध्यादेश का आधार क्या है?

सीएम सिद्धारमैया ने 24 मार्च 2018 को जारी एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा, “सर्कुलर के अनुसार यह कन्नड़ में 60 प्रतिशत और अन्य भाषाओं में 40 प्रतिशत था। हालांकि जब संशोधन किया गया तो यह 50-50 हो गया। इसलिए बैठक में इसे 60-40 प्रतिशत तक संशोधित करने का निर्णय लिया गया है और मैंने अधिकारियों को एक अध्यादेश लाने का निर्देश दिया है।” उन्होंने कन्नड़ भाषा व्यापक विकास अधिनियम 2022 का भी जिक्र किया। धारा 17 ‘कन्नड़ भाषा के व्यापक उपयोग और प्रसार के लिए किए जाने वाले सामान्य उपायों’ के बारे में बात करती है।