शत्रु संपत्ति विधेयक पर रुख स्पष्ट करने के लिए राज्यों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को भेजने में विफल रहने पर संसदीय समिति ने अप्रसन्नता व्यक्त की है। भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता वाली राज्यसभा की प्रवर समिति शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विनिमान्यकारण) विधेयक 2016 पर विचार कर रही है। समिति की मंगलवार को एक और बैठक बुलाई गई है। इसमें विधेयक के प्रावधानों पर अटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के अलावा अन्य विशेषज्ञों और पक्षकारों के विचार जाने जाएंगे। समिति ने बैठक में हिस्सा लेने के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड और दिल्ली के मुख्य सचिवों को बुलाया था। अधिकांश राज्यों ने कनिष्ठ अधिकारियों को भेजा जबकि कुछ ने दिल्ली स्थित अपने रेजिडेंट कमिश्नरों को भेजा था।

समिति के सदस्यों ने इस पर गहरी आपत्ति जताई क्योंकि यह पाया गया कि अधिकांश अधिकारी इस मुद्दे पर तैयारी के साथ नहीं आए थे। सूत्रों ने बताया, ‘हमने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को उनके राज्यों में ‘शत्रु संपत्ति’ के बारे में बताने के लिए बुलाया था और शत्रु संपत्ति विधेयक पर राज्यों के विचार भी बताने को कहा था। हालांकि अधिकांश अधिकारी तैयारी करके नहीं आए थे।’ इस स्थिति के मद्देनजर समिति के अध्यक्ष ने 19 अप्रैल को एक अन्य बैठक बुलाने का निर्णय किया है और स्पष्ट किया है कि इसमें राज्यों के मुख्य सचिव या राजस्व सचिव हिस्सा लें।

समिति ने 28 मार्च को पहली बैठक में सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा था कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में ऐसे ही मुद्दों से निपटने के लिए किस प्रकार के कानून हैं। शत्रु संपत्ति (संशोधन और विनिमान्यकारण) विधेयक 2016 बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पारित हो गया था। राज्यसभा ने शत्रु संपत्ति संबंधी संशोधन विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया। इसमें 23 सदस्य हैं।

केंद्र ने 1962, 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान और चीन के नागरिकों से जुड़ी संपत्ति को ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित किया। इसमें भारत के लिए शत्रु संपत्ति का संरक्षक केंद्र सरकार के तहत एक कार्यालय में निहित किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हाल ही में शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विनिमान्यकारण) दूसरा अध्यादेश 2016 को पुनर्स्थापित कर दिया। पहला अध्यादेश सात जनवरी को पुनर्स्थापित किया गया था।