मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के एक हफ्ते बाद ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इमर्जेंसी के दौरान जेल गए लोगों की मासिक पेंशन पर रोक लगा दी। इमर्जेंसी के दौरान मेंटिनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी लॉ (मीसा) और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स (डीआईआर) के तहत करीब 2 हजार लोगों को जेल में डाल दिया गया था। इन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि नियम के अंतर्गत हर महीने 25 हजार रुपए की पेंशन मिलती है।
सरकार बदलते ही कई योजनाओं में बदलाव का था अनुमान : बता दें कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनते ही कई योजनाओं में बदलाव का अनुमान लगाया जा रहा था। हालांकि, कमलनाथ के इस फैसले पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया। गौरतलब है कि 1975 से 1977 तक इमर्जेंसी के दौरान संजय गांधी द्वारा कांग्रेस में शामिल किए गए नेताओं में कमलनाथ भी थे, जो संजय की खास टीम का हिस्सा भी बने।
29 दिसंबर को जारी किया गया सर्कुलर : मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश के सभी डिविजनल कमिश्नर और जिलाधिकारियों को 29 दिसंबर 2018 को एक सर्कुलर जारी किया। इसमें मानदेय देने की प्रक्रिया को ज्यादा सटीक और पारदर्शी बनाने के लिए कहा गया है। आदेश के अनुसार, यह पेंशन पाने वाले सभी लाभार्थियों को भौतिक सत्यापन से संबंधित गाइडलाइंस भी भेजी जाएंगी।
जनवरी में मिलेगी बकाया पेंशन, फरवरी का पता नहीं : यह सर्कुलर सीएजी की रिपोर्ट के बाद जारी किया गया, जिसमें बताया गया है कि बीजेपी ने इस योजना को 2008 में लॉन्च किया था। हालांकि, पेंशन के तहत बांटी जाने वाली रकम योजना में प्रस्तावित रकम से काफी ज्यादा है, जिसका हिसाब मिलना काफी मुश्किल है। ऐसे में बजट से ज्यादा होने वाले इस खर्च पर विधानसभा में विचार करना जरूरी है। फिलहाल सर्कुलर में लाभार्थियों का सत्यापन कराने की तारीख तय नहीं की गई है। अधिकतर लाभार्थियों को जनवरी में बकाया पेंशन का भुगतान किया जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अगले महीने उन्हें पेंशन मिलेगी या नहीं।
सरकार ने गैरकानूनी कदम उठाया तो जाएंगे कोर्ट : बीजेपी के राज्य सभा सांसद और लोकतंत्र सेनानी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश सोनी ने बताया, ‘‘मध्य प्रदेश में यह पेंशन पाने वाले करीब 2 हजार लोग हैं। इनमें 300 विधवाएं भी शामिल हैं, जो अपने पति की मौत के बाद आधी पेंशन पाती हैं।’’ उन्होंने दावा किया कि वे किसी सीएजी रिपोर्ट या योजना में हो रही गड़बड़ी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन ऐसी रिपोर्ट विधानसभा में कभी पेश नहीं की गई। सोनी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि प्रशासनिक आदेश जारी करके किसी भी योजना को रद्द या बंद नहीं किया जा सकता। अगर सरकार कोई गैरकानूनी कदम उठाती है तो इस मामले को हम कोर्ट में ले जाएंगे। लाभार्थियों के फिजिकल वेरिफिकेशन पर उन्होंने कहा कि हर महीने लाभार्थियों के खातों में पैसा ट्रांसफर करने वाली बैंक अपने स्तर पर इसकी जांच करती हैं।
