दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में शैक्षणिक सत्र शुरू हुए एक महीना बीत चुका है, लेकिन अब भी 9,400 से अधिक सीटें खाली पड़ी हैं। विश्वविद्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, यह कुल सीटों का करीब 13 फीसद है।

खासकर बाहरी दिल्ली के कालेजों की स्थिति और भी खराब है, जहां कुछ संस्थानों में 50 फीसद से अधिक सीटें अब भी रिक्त हैं। भगिनी निवेदिता कालेज और अदिति महाविद्यालय जैसे कालेजों में सबसे अधिक सीटें खाली हैं। वहीं, भाषाई पाठ्यक्रम जैसे पंजाबी, उर्दू, संस्कृत, बंगाली जिन्हें कभी स्थानीय छात्रों में अच्छी-खासी लोकप्रियता हासिल थी, अब छात्रों की प्राथमिकताओं से बाहर होते जा रहे हैं।

सनद रहे कि इससे पहले सीयूईटी के कई चरण संपन्न हुए लेकिन शत फीसद दाखिले का लक्ष्य तय समय में पूरा नहीं हो सका। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन पुराने ढर्रा वाले ‘बेस्ट फोर’ से दाखिले करने की प्रक्रिया पर लौटा है। ‘बेस्ट फोर’ की माथापच्ची में लगे शिक्षकों में भारी रोष है।

कई कालेज में खाली सीटों पर दाखिले के लिए दस हजार आवेदन

राजधानी कालेज के शिक्षक प्रो पंकज गर्ग ने कहा कि अब दोबारा हमें ‘बेस्ट फोर’ का अंकन करने में लगा दिया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन पारदर्शी और केंद्रीकृत मेरिट सूची बनाए रखने के बजाय, कालेज विभागों के टीचर्स-इन-चार्ज को मेरिट सूची बनाने और संभालने की जिम्मेदारी थमा दी गई है, जिससे शिक्षक इन दिनों महज लिपिकीय भूमिकाओं में है। कई कालेज में खाली सीटों पर दाखिले के लिए दस हजार आवेदन मिले हैं, जिनमें वे लोग ‘बेस्ट फोर’का अंकन कर रहे हैं।’

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पंकज गर्ग ने बताया कि यहां बीएससी के तीन पाठ्यक्रमों में खाली 30 सीटों के लिए 30 हजार आवेदन आए हैं। उसी प्रकार बीए-प्रोग्राम की खाली 27 सीटों पर 3300 आवेदन आए हैं। मिरांडा हाउस की शिक्षक आभा हबीब देव ने कहा कि सीयूईटी ने दिल्ली विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा का उपहास बना दिया है। 14 हफ्तों के सेमेस्टर में छह हफ्तों की पढ़ाई का नुकसान झेलने वाले ये नए प्रवेशित छात्र कैसे निपटेंगे, इसका कोई जवाब नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन को इसका उत्तर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाबी, ऊर्दू, संस्कृत, बंगाली आदि भाषाई पाठ्यक्रमों में अमूमन स्थानीय व नजदीकी छात्र दाखिला लेते थे।