दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव में अदालत के दिशानिर्देशों और विश्वविद्यालय प्रशासन व चुनाव समिति की सख्ती का असर साफ दिख रहा है। करीब सात दशक के डूसू इतिहास में पहली बार छात्र संगठन लिंगदोह समिति की सिफारिशों को ‘कुछ हद’ तक मानते नजर आ रहे हैं। खासतौर पर कैंपस को अव्यवस्थित करने वाले तौर-तरीकों पर उन्होंने खुद पर अंकुश लगाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि अब तक वे 90 प्रतिशत सफल रहे हैं।

मुख्य चुनाव अधिकारी (डूसू) डॉ. राजकिशोर शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है जल्द ही यह लक्ष्य ‘शत-प्रतिशत’ हासिल कर लिया जाएगा। उनके मुताबिक, छात्र संघ चुनाव और लिंगदोह समिति की दृष्टि से डीयू जल्द ही ‘आदर्श कैंपस’ बन सकता है। डॉ. शर्मा ने इसका श्रेय छात्रों को दिया।

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उन्होंने कहा कि यह बदलाव एक-दो दिन में संभव नहीं था। सतत जागरूकता अभियान और संवेदनशील छात्रों की स्वीकार्यता ने इसे संभव बनाया। हालांकि, परिसर के बाहर स्थिति कुछ अलग है। नाम न छापने की शर्त पर चुनाव समिति के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई शिकायतें मिली हैं।लिंगदोह समिति के उल्लंघन मामलों में अदालत को निष्पक्ष तरीके से सही तथ्य बताए जा रहे हैं।

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मुख्य चुनाव अधिकारी ने कहा कि छिटपुट मसलों को छोड़ दें तो अब तक 90 प्रतिशत सफलता मिली है। कैंपस ही नहीं, कॉलेजों तक से रोज शाम छह बजे तक रिपोर्ट मांगी जाती है। नतीजे उत्साहजनक हैं। इस बार लोकतंत्र की दीवारों (Wall of Democracy) के अलावा परिसर में कहीं बड़े होर्डिंग, पोस्टर, बैनर या लाउडस्पीकर नहीं दिख रहे हैं।

कुछ साल पहले तक दिल्ली के फ्लाइओवर और मेट्रो की दीवारें पोस्टरबाजी से पटी रहती थीं। लेकिन इस बार केवल ‘वाल ऑफ डेमोक्रेसी’ पर ही पोस्टरों की इजाजत दी गई है। हालांकि, विश्वविद्यालय परिसर से बाहर लिंगदोह नियमों की अनदेखी अब भी हो रही है, जिसमें धन और वैभव का खुला प्रदर्शन सबसे बड़ा मसला है।