पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने भले ही अपनी परफॉर्मेंस में सुधार किया हो, लेकिन पार्टी के अंदर एक बार फिर असंतोष बढ़ता जा रहा है। इस असंतोष की बड़ी वजह कथित तौर पर बिना राजनीतिक अनुभव वाले आरएसएस के लोगों को पार्टी में अहम पद दिया जाना है। पार्टी प्रमुख अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में जीत का दावा किया था और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को सीधी चुनौती दे डाली थी, इसके बावजूद अधिकतर लोगों का यह मानना था कि पार्टी का चुनाव में प्रदर्शन बहुत अप्रत्याशित नहीं आने वाला था। इसके बावजूद, बीजेपी ने अपनी परफॉर्मेंस से बहुत सारे राजनीतिक जानकारों को चौकाया था। बीजेपी ने तीन सीटें जीतीं। हालांकि, पार्टी के वोट पर्सेंटेज में कमी आई। लोकसभा 2014 चुनाव में मिले 17 पर्सेंट की जगह महज 10.2 पर्सेंट वोट मिले।
बीजेपी के एक नेता ने नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि राज्य पार्टी अध्यक्ष घोष के उत्थान और पूर्व प्रेसिडेंट राहुल सिन्हा को दरकिनार किया जाना असंतोष को बढ़ावा दे रहा है। नेता ने कहा, ‘समस्या वही है जो राज्य बीजेपी में पहले से रही है। राहुल सिन्हा के अपनी पसंद के लोग रहे हैं जिनके दूसरे धड़े के लोगों के साथ विवाद रहा है। इस दूसरे धड़े में बीजेपी की महिला नेता रुपा गांगुली जैसे लोग हैं। अब घोष के अध्यक्ष बनने के बाद एक तीसरा धड़ा बन गया है। इस धड़े में घोष के अलावा आरएसएस के वे लोग शामिल हैं, जिन पर पार्टी अध्यक्ष भरोसा करते हैं। ये सभी तीन धड़े एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।’
पार्टी में जिम्मेदारियों से मुक्त किए गए एक अन्य सीनियर नेता ने दावा किया कि आरएसएस इस बात की कोशिश कर रहा है कि राज्य बीजेपी के फैसलों पर उसका नियंत्रण हो। नेता के मुताबिक, इससे पार्टी को और ज्यादा नुकसान हो रहा है। नेता ने कहा, ‘आरएसएस हमेशा से बीजेपी का अभिन्न हिस्सा रहा है। हालांकि, आखिरी कुछ महीनों में यह सब कुछ इतना बढ़ गया है कि नाकाबिल लोगों को विभिन्न पद दिए जा रहे हैं क्योंकि उनको आरएसएस का समर्थन हासिल है।’ बीते छह महीनों में कई जिलाध्यक्षों और संगठन सचिवों को हटाया गया है। बीजेपी के असंतुष्ट धड़े ने आरएसएस पर जरूरत से ज्यादा दखल देने और उन गैर राजनीतिक तत्वों को बढ़ावा दिए जाने का आरोप लगाया है, जिनको न तो राज्य की पॉलिटिक्स की समझ है और न ही संगठन की।

