जल है तो जीवन है, जल है तो कल है। इसी मुद्दे को लेकर राजधानी दिल्ली में एक बड़ा संवाद होने जा रहा है। इसमें देशभर के जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग परंपरागत वर्षा जल का बचाने पर 22 दिसंबर को संवाद करेंगे। इस दौरान विभिन्न राज्यों के जल योद्धा जुटेंगे। दिल्ली में प्रेस क्लब में होने जा रहे इस समागम में जल बचाने से लेकर जल प्रबंधन तक पर चर्चा होगी। इसके बारे में जानकारी देते हुए जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार के जल योद्धा सम्मान से सम्मानित जल ग्राम मेड़बंदी यज्ञ अभियान के संस्थापक उमा शंकर पांडे ने बताया कि सूखा प्रभावित राज्यों के जल विशेषज्ञ, जल वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, भूवैज्ञानिक, अच्छा श्रेष्ठ कार्य करने वाले जमीनी साथियों, पौधरोपण, जल संरक्षण, कृषि के क्षेत्र में अद्भुत कार्य करने वाले अंजान नायकों को सम्मानित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि राज्य का सीमांकन नदियों से होता है। कुआं भारतीय संस्कृति के साक्षी है। अमृत जल के भंडार हैं, लोक तीर्थ है, लोक परंपरा में जल दान का बड़ा महत्व है। पानी बचाना सदियों से सरकार का नहीं समाज का और समुदाय का कार्य रहा है। समुदाय में ही ऐसी समस्याओं का समाधान है। यदि हमें तृतीय विश्व युद्ध से बचना है तो भू जल संरक्षण करना होगा।
कहा कि हम अकेले बांध नहीं बना सकते, नदी नहीं खोज सकते, तालाब नहीं बना सकते, किंतु छोटे-छोटे प्रयास जल संरक्षण की दिशा में कर सकते हैं, जैसे हमारे पुरखे करते थे। जल बनाया, नहीं केवल बचाया जा सकता है। जल की सत्ता रहस्य में है। जल सबको नया करता है। जल का सानिध्य पाकर बीज वृक्ष बनता है। जल में बिजली है, जल सृष्टि का प्राण है, जल जोड़ता है, सृजन करता है, प्रलय लाता है।

कहा कि खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़ पर पिछले 27 वर्षों से बगैर सरकार की सहायता के समुदाय के आधार पर इस विधि से जल संरक्षण कर रहे हैं। मेड़बंदी करके वर्षा बूंदों को खेत में रोककर जल संरक्षण, पर्यावरण दोनों को संतुलित करने का प्रयास किसानों के साथ कर रहे हैं। यही स्थाई उपाय है। इस विधि से भूजल संरक्षण बढ़ता है। आसपास का जल स्तर ऊपर आता है। कोई भी किसी भी समय बगैर शिक्षण प्रशिक्षण के अपने खेतों में मेड़बंदी कर सकता है।