उत्तर प्रदेश के एटा में पुलिसकर्मियों द्वारा एक ढाबा मालिक को झूठे केसों में फंसाने का मामला सामने आया है। बताया गया है कि कुछ पुलिसकर्मियों ने ढाबा मालिक पर यह कार्रवाई इसलिए कि क्योंकि उसने खाना खाने के लिए पुलिसवालों से पैसे चुकाने की मांग रख दी थी। इससे आगबबूला हुए पुलिसवालों ने पहले तो ढाबा मालिक को देख लेने की धमकी दी और बाद में अन्य पुलिसकर्मियों के साथ आकर मालिक के साथ उसके स्टाफ और कुछ अन्य लोगों को झूठे केस में फंसाकर जेल में डाल दिया।

बता दें कि यह मामला फरवरी का है। जिस ढाबा मालिक प्रवीण कुमार यादव के साथ यह घटना घटी, वह एक इंजीनियरिंग ग्रैजुएट है। 40 दिन तक लंबी चली लड़ाई के बाद आखिरकार उच्चाधिकारियों ने जांच में पाया कि घटना में प्रवीण और 10 अन्य लोगों को जबरदस्ती झूठे केसों में फंसाया गया। इन्क्वॉयरी के बाद एक इंस्पेक्टर और दो हेड कॉन्स्टेबलों पर एफआईआर दर्ज की गई और उन्हें सस्पेंड कर दिया गया।

जिस इंस्पेक्टर को सस्पेंड किया गया है, उसका नाम इंद्रेश पाल सिंह बताया गया। जांच में पाया गया कि इंद्रेश ने हेड कॉन्स्टेबल शैलेंद्र और संतोष कुमार के साथ मिलकर ढाबा मालिक समेत 10 युवाओं पर हत्या की कोशिश और एक्साइज ऐक्ट, आर्म्स ऐक्ट और नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) ऐक्ट की धाराओं में केस दर्ज किया था।

शराब-गांजा तस्करी का आरोप लगाकर किया था ढाबा मालिक को गिरफ्तार: पुलिस ने जिस दिन ढाबा मालिक और अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, उस दिन एक प्रेस नोट भी जारी किया। इसमें आरोप लगाया कि गिरफ्तार किए गए लोग शराब और ड्रग्स की तस्करी कर रहे थे। पुलिस ने कहा कि उनके पास से छह रिवॉल्वर, 12 जिंदा कारतूस, दो किलो गांजा और 80 लीटर शराब बरामद की गई। इन्हीं आरोपों पर 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

कैसे खुला पूरा मामला?: हालांकि, इस पर ढाबा मालिक प्रवीण के भाई ने पुलिस के वर्जन को ही झूठा करार दे दिया। उसने बताया कि 4 फरवरी को दोपहर 2 बजे कुछ पुलिसवाले उसके ढाबे पर खाना खाकर बिना पैसे दिए जा रहे थे। जब पैसे मांगे गए तो उन्होंने ढाबा मालिक को धमकी दी और कहा कि इसका बदला लेंगे। बाद में दो जीपें ढाबे पर आईं और सभी को लेकर चली गईं। इनमें ढाबा मालिक के साथ कर्मचारी और बीच-बचाव करने आए कस्टमर भी शामिल थे।

प्रवीण के भाई ने बताया कि पुलिस ने पहले दावा किया था कि उसे ढाबे में चोरी के संदिग्धों के छुपे होने की जानकारी मिली थी और जब वह आरोपियों को पकड़ने पहुंची, तो उन पर फायरिंग की गई। इसी को लेकर पहले तो पुलिस ने 10  लोगों को जेल में डाल दिया, लेकिन बाद में प्रवीण के दिव्यांग होने की वजह से उसे शाम को ही छोड़ दिया गया।

पुलिस की एनकाउंटर वाली बात की नहीं हुई पुष्टि: इस मामले की जांच कर रहे आईजी (अलीगढ़ रेंज) पीयूष मोदिया ने कहा कि घटना की जांच अब अलीगढ़ में होगी, ताकि निष्पक्षता बनाई रखी जा सके। एडिशनल एसपी राहुल कुमार ने कहा, “इंक्वॉयरी के दौरान ढाबे के पास पूछताछ करने पर पता चला कि उस दिन किसी ने भी पास से गोलियां चलने की आवाज नहीं सुनी थी। हमने गिरफ्तार किए गए 10 लोगों का बैकग्राउंड चेक किया और पाया कि दो को छोड़कर किसी के खिलाफ कोई केस नहीं था। इसी के बाद जांच का दायरा पुलिसकर्मियों तक बढ़ाया गया।”