भर्ती के लिए कुछ कालेजों के नए रोस्टर आ चुके हैं बाकी कालेजों में यह आने वाले हैं। भर्ती की कवायद शुरू होते ही आठ-दस सालों से तदर्थ पढ़ा रहे 400 से अधिक शिक्षक छंटनी का शिकार होने को हैं। वजह उनकी अक्षमता नहीं है, बल्कि वह पेंच है जो बताती है उनकी सालाना आय ईडब्लूएस के तय आय आठ लाख से ज्यादा हो चुकी है, लिहाजा वे योग्य नहीं हैं।
दरअसल, इस समय तदर्थ शिक्षकों को करीब एक लाख रुपए का वेतन मिलता हैं। लिहाजा कोई भी शिक्षक जो एक साल से डीयू में तदर्थ पढ़ा रहा है वह निश्चित तौर पर ईडब्लूएस की तय आय सीमा से बाहर हो जाएगा।
उसकी जगह दूसरी बहाली होगी। लेकिन दूसरी बहाली वाला तदर्थ शिक्षक भी (अगर स्थायी नहीं हो पाता) तो एक साल बाद नौकरी से वह फिर बाहर हो जाएगा क्योंकि तब तक वह भी ईडब्लूएस की तय आय की सीमा को पार कर जाएगा। आठ -नौ महीने में ही उसकी आय आठ लाख से ज्यादा की हो चुकेगी।
जानकारों की माने तो ये नियुक्तियां हर साल होने वाली ‘अदला-बदली’ से ज्यादा कुछ नहीं रह जाएंगी। उनका मानना है कि यह एक हस्यास्पद अनुबंध है, जिसे यूजीसी या मंत्रालय ने ठीक नहीं किया तो निश्चित तौर पर मामला अदालत में जाएगा। बहरहाल सूत्रों की माने तो विश्वविद्यालय में करीब 400 से ज्यादा तदर्थ शिक्षकों की नौकरी पर खतरा है। ये वे शिक्षक हैं जो डीयू में नौकरी पक्की होने की बाट जोह रहे थे।
छात्रों को ईडब्लूएस आरक्षण तो दिया गया, लेकिन शिक्षक भर्ती में अतिरिक्त सीटें नहीं दी गईं
डूटा अध्यक्ष एके भागी बताते हैं कि शिक्षक प्रदर्शन कर सभी मुद्दे को यूजीसी के जरिए सरकार तक पहुंचा चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर है। वहीं, पूर्व डूटा उपाध्यक्ष डाक्टर आलोक रंजन ने बताया कि 500 से ज्यादा तदर्थ शिक्षकों की नौकरी जाने को तैयार है। शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डाक्टर हंसराज सुमन कहते हैं कि छात्रों को ईडब्लूएस आरक्षण तो दे दिया गया, लेकिन शिक्षक भर्ती में अतिरिक्त सीटें नहीं दी गई। जिससे यह समस्या उत्पन्न हुई है। बता दें कि डीयू प्रशासन ईडब्लूएस नियम के तहत साक्षात्कार के लिए संबंद्ध सभी कालेजों के प्राचार्यों तथा संस्थान के निदेशकों को निर्देश दे चुका है।
