पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों के दौरान गोकुलपुरी में एक छोटे रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई थी। रेस्टोरेंट के मालिक उस्मान अली ने राज्य सरकार से हर्जाने के रूप में 3 लाख रुपये मांगे थे। लेकिन प्रशासन की ओर से उन्हें सिर्फ 750 रुपये का भुगतान किया गया है।
दंगों के दौरान गुलज़ेब परवीन गर्भवती थी। 25 फरवरी को उनके पति मोशिन अली को मार दिया गया था। मोशिन का शव खजूरी खास पुलिस स्टेशन से कुछ मीटर की दूरी पर मिला था। मंगलवार को परवीन ने क बच्ची को जन्म दिया, जो हापुड़ के अस्पताल में आईसीयू में है। मोहसिन के बड़े भाई शाहनवाज ने बताया “मुआवजे को रोक दिया गया था क्योंकि हमारे पास मोशिन का मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं था और लॉकडाउन के कारण यह विलंबित हो गया। अब, हमने सभी दस्तावेज जमा कर दिए हैं, लेकिन हमें अभी भी कोई मुआवजा नहीं मिला है।”
दंगों के छह महीने बाद भी दिल्ली सरकार को पीड़ितों और उनके परिवारों द्वारा मुआवजे में देरी, बेमतलब मुआवजा खारिज करने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। बुधवार को, अल्पसंख्यकों के कल्याण पर दिल्ली विधानसभा के एक पैनल ने राज्य के राजस्व विभाग से मिसमैच के कम से कम 30 मामलों और रजेक्शन्स के 50 केसों की समीक्षा करने को कहा।
सूत्रों ने बताया कि अब तक 3,200 दावों में से 900 से अधिक खारिज कर दिए गए हैं। सरकार ने 1,526 दावों को मंजूरी दे दी है और मुआवजे की राशि लगभग 19 करोड़ रुपये है। हालांकि, मुआवजे के दावे के बीच कई मामलों में हर्जाने के रूप में मांगी गई राशि और स्वीकृत राशि में बड़ा अंतर देखने को मिला है। जिसने पैनल को मामले को उठाने के लिए प्रेरित किया।
AAP के मुस्तफाबाद के विधायक और पैनल के एक सदस्य हाजी यूनुस ने बुधवार को पैनल की बैठक के दौरान जिला और राजस्व विभाग के शीर्ष अधिकारी से कहा ” सीएम और डिप्टी सीएम के दिशा निर्देशों के बावजूद कोई काम हुआ ही नहीं।”
वहीं पैनल के एक अधिकारी का कहना है कि मुआवजे के लिए तैयार किया गया मसौदा अजीब है। उन्होने कहा कि अगर कोई व्यक्ति 3 लाख रुपये की पूरी लूट का दावा करता है तो उसे मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन वहीं अगर कोई व्यक्ति कहता है कि उसकी में दुकान आंशिक रूप से 6 लाख रुपये की लूटी की गई है तो उसे केवल 50,000 रुपये मिलेंगे।
