अपने पिता की मर्सिडीज से 32 वर्षीय एक मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव की कथित तौर पर कुचल कर जान लेने के आरोपी किशोर की अपील पर एक अदालत ने शुक्रवार (10 जून) को दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। इस किशोर ने अपने खिलाफ वयस्क की तरह सुनवाई किए जाने के किशोर न्याय बोर्ड के आदेश को चुनौती दी है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विमल कुमार यादव ने अपील के संबंध में दिल्ली पुलिस तथा किशोर की दलीलों पर सुनवाई के लिए दो जुलाई की तारीख तय की है। सुनवाई के दौरान, किशोर के वकील ने अदालत को सूचित किया कि उन्हें अभी तक आरोपपत्र की प्रति नहीं मिली है। अदालत के आदेश पर, जांच अधिकारी ने आरोपपत्र तथा उससे नत्थी दस्तावेज किशोर को मुहैया कराए। किशोर अपने अभिभावकों के साथ अदालत में मौजूद था।
किशोर की ओर से पेश अधिवक्ता अभिमन्यु कम्पानी ने कहा कि आरोपी को आरोपपत्र मुहैया कराए बिना ही किशोर न्याय बोर्ड के पीठासीन अधिकारी ने दलीलें सुनीं और आदेश दे दिया कि किशोर के खिलाफ सुनवाई उस तरह की जाए जैसे वयस्क के खिलाफ की जाती है और फिर मामला निचली अदालत को भेज दिया गया।
विशेष सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं उनका संरक्षण) कानून के संशोधित प्रावधानों के अनुसार, सत्र अदालत मामले को फिर से बोर्ड के पास वापस नहीं भेज सकती और अगर उसे लगता है कि किशोर के खिलाफ सुनवाई वयस्क की तरह नहीं की जानी चाहिए तो उसे स्वयं ही बोर्ड के पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभाते हुए मामले की सुनवाई करनी होगी।
पुलिस ने किशोर के पिता की जमानत रद्द करने की मांग करते हुए एक आवेदन भी दाखिल किया है। अपील में किशोर के वकील ने दावा किया है कि बेहतर होता कि उसके खिलाफ लापरवाही और तेज गति से गाड़ी चलाने के कानून के तहत मौत होने के कथित अपराध का मामला दर्ज किया जाता। उन्होंने यह भी कहा कि यह गैरइरादतन हत्या का मामला नहीं है इसलिए हत्या का मामला नहीं बनता जबकि उस पर यह आरोप लगाया गया है।
इस अपील में कहा गया कि किशोर का पूर्व का अपराध यातायात नियम के उल्लंघन का है और इसका दुर्घटनाओं से कोई संबंध नहीं है। इसलिए, यह भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए को भादंसं की धारा 304 में बदलने का आधार नहीं है। दो जुलाई को अदालत उस मुख्य मामले की सुनवाई भी करेगी जो उसके पास किशोर न्याय बोर्ड ने भेजा है। किशोर न्याय बोर्ड ने चार जून को आदेश दिया था कि किशोर के खिलाफ सुनवाई वयस्क की तरह की जाए। तब बोर्ड ने कहा था कि किशोर द्वारा किया गया कथित अपराध ‘गंभीर’ है।
बोर्ड ने यह आदेश पुलिस की उस अपील पर दिया जिसमें आरोपी के खिलाफ वयस्क की तरह सुनवाई करने के लिए मामले का स्थानांतरण निचली अदालत में करने का आग्रह किया गया था। किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं उनका संरक्षण) कानून 2015 में संशोधन के बाद अपनी तरह का पहला मामला है। संशोधन के तहत बोर्ड को किशोरों के जघन्य अपराध के मामले सत्र अदालत स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई है।