जतिन आनंद

दिल्ली नगर निगम में महापौर पद पर आम आदमी पार्टी (AAP) की शैली ओबेराय (Shelly Oberoi) निर्वाचित हो गई हैं, लेकिन अभी आम आदमी पार्टी के लिए नगर निगम के अंदर कोई भी फैसला लेना बहुत आसान नहीं होगा। दरअसल नगर निकाय में मेयर केवल नाममात्र का मुखिया होता है। सभी कार्यकारी शक्तियां स्थायी समितियों (Standing Committees) के पास होती हैं। मेयर के पास केवल इतनी शक्ति होती है कि वह सदन की विशेष बैठक बुला सकती हैं, बैठक आयोजित करने के लिए कोरम की घोषणा कर सकती हैं और कोई सदस्य यदि अपनी संपत्तियों का विवरण का ऐलान नहीं करता है तो उसको अयोग्य ठहरा सकती हैं।

स्थायी समितियों के पास होती हैं कई बड़ी शक्तियां

परियोजनाओं को वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने, लागू की जाने वाली नीतियों से संबंधित चर्चाओं और उनको अंतिम रूप देने, उप-समितियों की नियुक्ति (शिक्षा, पर्यावरण, पार्किंग आदि जैसे मुद्दों पर) और नियम बनाने की शक्तियां स्थायी समिति के दायरे में होती हैं। इस समिति में 18 सदस्य होते हैं। इस कमेटी के छह सदस्यों का चुनाव पार्षद करते हैं, वहीं शेष 12 का चुनाव बाद में वार्ड कमेटियां करती हैं। समिति में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है, जो इसके सदस्यों में से चुना जाता है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए निगम की नीति और वित्तीय निर्णयों पर नियंत्रण रखने के लिए समिति में स्पष्ट बहुमत होना महत्वपूर्ण है।

कांग्रेस पार्षदों ने वॉकआउट किया तो बदल सकती है किस्मत

बुधवार को हुए मेयर चुनाव में कांग्रेस पार्षदों ने वोट नहीं डाला। उन्होंने पहले ही कह दिया था कि वे वोट का बहिष्कार करेंगे और इसके बजाय आप और भाजपा की “जनविरोधी” नीतियों का विरोध करेंगे। यह वॉकआउट, यदि स्थायी समिति के चुनावों में पालन किया जाता है, तो आम आदमी पार्टी की किस्मत बदल सकती है।

सदन में स्थायी समिति के छह सदस्यों के सीधे चुनाव के लिए अपनाया जाने वाला फॉर्मूला एक तरजीही प्रणाली है जिसमें पहले 36 वोट पाने वाले पार्षद की जीत होती है। अगर कांग्रेस के पार्षद मतदान करते हैं, तो आप को आसानी से तीन सीटें मिलेंगी क्योंकि उसके पास 134 वोट हैं, लेकिन भाजपा को परेशानी होगी क्योंकि उसे इतनी ही सीटें हासिल करने के लिए 108 पार्षदों की जरूरत होगी। भाजपा के पास 104 निर्वाचित पार्षद हैं और एक निर्दलीय का समर्थन है। एल्डरमैन इन चुनावों में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं।