दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपनी तलाकशुदा बहन की समस्याओं को कोई भाई चुपचाप नहीं देख सकता। अदालत ने कहा कि भाई ऐसे में चुप नहीं रह सकता जब बहन को आर्थिक मदद की जरुरत हो। इसके साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना बच्चों का कर्तव्य है।
दरअसल इससे जुड़े एक मामले में एक महिला ने अदालत में याचिका दायर कर दावा किया था कि उसके पूर्व पति की तलाकशुदा बहन को आश्रित नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस दावे को निराधार बताते हुए यह टिप्पणी की।
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि यह दावा निराधार है। भारत में भाई और बहनों का संबंध और उनकी एक दूसरे पर निर्भरता भले ही हमेशा आर्थिक तौर पर नहीं होती, लेकिन ऐसा माना जाता है कि जरूरत के समय बहन या भाई एक-दूसरे को परेशानी की हालत में छोड़ेंगे नहीं या उन्हें नजरअंदाज नहीं करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति परिवार के सदस्यों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देती है।
हाई कोर्ट ने कहा कि परिवार के सदस्य आपस में स्नेह के कारण जुड़े रहते हैं और एक-दूसरे के लिए बुरे समय में खड़े रहते हैं। अदालत ने कहा, ‘‘खास तौर पर भाई और बहन के रिश्ते में एक-दूसरे का ख्याल रखने की गहरी भावना होती है। भारत के त्योहार, नियम और परंपराएं एक दूसरे का ख्याल रखने, स्नेह करने और एक-दूसरी की जिम्मेदारी लेने को बढ़ावा देते हैं।’’
बता दें कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि उसके पूर्व पति द्वारा उसे दिये जाने वाला गुजारा भत्ता बढ़ाया जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि 79 साल के पिता, एक तलाकशुदा बहन, दूसरी पत्नी और एक बेटी हैं, व्यक्ति पर आश्रित हैं। अदालत ने कहा, ‘‘इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बहन को उसके पति से गुजारा भत्ता मिलता है, लेकिन भाई ऐसे समय में अपनी बहन की परेशानियों को चुपचाप नहीं देख सकता, वो भी तब जब उसे उसकी जरूरत हो। उसे अपने खर्चों की सूची में अपनी बहन की मदद करने के लिए प्रावधान करना होता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा अपने जीवन के सुनहरे दिनों में अपने माता-पिता की देखभाल करना भी बेटा/बेटी का कर्तव्य है। इसलिए बेटा अपने पिता की इच्छाओं एवं जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो, यह सुनिश्चित करने के लिए इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि गुजारा भत्ता की राशि तय करते समय उसके पिता की देखभाल पर होने वाले खर्च को भी संज्ञान में लिया जाए।’’
अदालत ने कहा कि व्यक्ति को प्रतिमाह 35,000 रुपए वेतन मिलता है और उसकी पहली पत्नी से हुआ उसका बेटा वयस्क है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति की आय पर चार लोग आश्रित हैं। जिसमें वह, उसकी पूर्व पत्नी, उसकी दूसरी पत्नी और दूसरे विवाह से हुई उसकी बेटी तथा इसके अलावा उसे अपने पिता और तलाकशुदा बहन के लिए भी खर्च निकालना होता है।
अदालत ने कहा, ‘‘ऐसे में आय को पांच भागों में विभाजित करना होगा, जिसके दो हिस्से परिवार का कमाने वाला सदस्य होने के नाते प्रतिवादी को दिए जाएंगे और बाकी आश्रितों को एक-एक हिस्सा दिया जाएगा।’’ अदालत ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता को मिलने वाले गुजारा भत्ते की राशि 6,000 रुपए से बढ़ाकर 7,500 कर दी।