दिल्ली उच्च न्यायालय ने नौ वर्षीय बेटी से बार-बार बलात्कार करने वाले एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायालय ने कहा कि लड़की की रक्षा करने की बजाय उसने अमानवीय कृत्य किया। न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा कि व्यक्ति किसी तरह की नरमी का हकदार नहीं है क्योंकि उसने अपनी ही नाबालिग बेटी के साथ ऐसा कृत्य किया। पीठ ने पीड़िता की गवाही पर यकीन करते हुए कहा कि कोई ऐसा कारण नहीं बनता कि बच्ची अपने ही पिता के खिलाफ झूठा बयान दे और इस संगीन अपराध के लिए उस पर आरोप लगाना आसान नहीं था।

न्यायालय ने कहा कि पीड़िता ने लंबे समय तक शिकायत दर्ज नहीं कराई और चुप रही। मां के घर पर नहीं होने रहने पर बच्ची के साथ कई बार बलात्कार किया गया और पिता की धमकी के कारण उसने मां को इस बारे में नहीं बताया। बाद में पीड़िता की शिक्षक ने उसके शरीर पर चोट के निशान पाए और उससे जानकारी मांगी। इस दरम्यान उन्हें यह मालूम चला कि लड़की का पिता ही उसका यौन शोषण कर रहा था।

इसके बाद बच्ची की मां ने 2012 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और 2013 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। वहीं, वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने की मांग करने वाली कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी दंडात्मक प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है, यह किसी कृत्य को अपराध की श्रेणी में नहीं लाने का आधार नहीं हो सकता। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ की इस टिप्पणी का इसलिये महत्व है क्योंकि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाने के पीछे जो कारण केंद्र ने बताए थे उसमें से एक यह था कि इसका दुरुपयोग हो सकता है।

एनजीओ आरआईटी फाउन्डेशन और आॅल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन्स एसोसिएशंस की अधिवक्ता करुणा नंदी ने अदालत से कहा कि महिलाएं झूठी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं, लेकिन इस तरह के मामले विरले हैं। उन्होंने कहा कि झूठे मामले दर्ज कराने की संभावना, यह वैवाहिक संस्था को अस्थिर सकता है और यह पतियों को प्रताड़ित करने का औजार बन सकता है, यह वैवाहिक जोड़े के बीच जबरन यौन संबंध को अपराध घोषित नहीं करने का बचाव नहीं हो सकता।