एक रोड एक्सीडेंट की पीड़िता को दिल्ली हाई कोर्ट ने 1 करोड़ 12 लाख रुपये का मुआवजा का आदेश दिया है। 14 साल पहले महिला का इतना बुरा एक्सीडेंट हुआ था कि वह व्हीलचेयर पर रहने को मोहताज हो गई। जिस वक्त यह हादसा हुआ, उस समय महिला की उम्र 11 साल थी और स्कूल से घर जाते समय यह दुर्घटना हुई। महिला ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एक्सीडेंट के बाद उसके शरीर के निचले हिस्से ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया है, जिस कारण वह जीवनभर के लिए दूसरों पर निर्भर हो गई है। याचिका में एमएसीटी के फैसले को चुनौती देते हुए कहा गया कि सभी पहलुओं पर अच्छी तरह से ध्यान नहीं दिया गया और रोड एक्सीडेंट के बाद छात्रा जिस हालत में है उसके लिए 47 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की गई। हाईकोर्ट ने सभी रिकॉर्ड पर विचार करने के बाद मुआवजे की रकम बढ़ाकर 1 करोड़ 12 लाख रुपये करने का आदेश दिया है।

छात्रा का साल 2007 में स्कूल से घर जाते समय एक्सीडेंट हुआ था, उस वक्त छात्रा की उम्र सिर्फ 11 साल थी। 2008 में उसने एमएसीटी में याचिका दाखिल की थी। इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की गई। याचिका पर सुनवाई कर रहे जज जस्टिस नाजमी वजिरी ने याचिकाकर्ता के लिए 1 करोड़ 12 लाख रुपये के मुआवजे आदेश दिया है। जज ने कहा कि मुआवजे में 65,09,779 रुपये की वृद्धि की गई है। इसके बाद याचिकाकर्ता ज्योति सिंह को दिया गया कुल मुआवजा 1,12,59,389 हो गया है, जो 7.5% प्रति वर्ष की दर से देय है। एमएसीटी में याचिका दाखिल होने की तारीख 10 मार्च, 2008 से अभी तक की राशि को जोड़कर मुआवजे में वृद्धि की गई है।

याचिकाकर्ता के वकील सौरभ कंसल ने कहा कि इस दुर्घटना के बाद छात्रा हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर रहने को मोहताज हो गई है। उन्होंने कहा कि वह किसी के सहारे के बिना अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती, छोटे-छोटे कामों के लिए भी उसको किसी और के सहारे की जरूरत होगी।

कंसल ने कहा कि एमएसीटी ने इस मामले में कई पहलुओं पर गौर किए बिना ही उन्हें अस्वीकार कर दिया था। मेडिकल रिपोर्ट सहित रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने कंसल द्वारा उठाई गई दलीलों को स्वीकार कर लिया और कुल 1,12,59,389 रुपये के मुआवजे की गणना की।