दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में साजिश रचने के आरोपी उमर खालिद की जमानत अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने शुक्रवार (22 अप्रैल 2022) को इस मामले में कहा कि फरवरी 2020 में दिया गया उमर खालिद का भाषण, दिल्ली दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश का आधार बना। दिल्ली हाईकोर्ट ने खालिद के बयान को आपत्तिजनक मानते हुए इस पर दिल्ली पुलिस की प्रतिक्रिया मांगी है।
इस मामले में जमानत की मांग करने वाली उमर खालिद की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अमरावती में दिए गए खालिद के भाषण में कुछ बयान आपत्तिजनक और भड़काऊ थे, जिसके मुताबिक केवल एक संस्था ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं- बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी उमर खालिद की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए की। कड़कड़डूमा कोर्ट से जमानत अर्जी खारिज होने के बाद उमर खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उमर खालिद के वकील से कहा कि क्या आपको नहीं लगता कि यह भाषण भड़काऊ है। क्या यह कहना कि आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, गलत नहीं है? आपकी बात से ऐसा लगता है जैसे सिर्फ एक ही समुदाय अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहा था। अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर ऐसे भड़काऊ बयान नहीं दिए जा सकते। लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं है। हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या भगत सिंह और गांधी जी ने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया?
यह भाषण आक्रामक था- दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह भाषण आक्रामक है। आपने ऐसा कम से कम पांच बार कहा। अदालत ने वकील से सवाल किया, ” क्या आपको नहीं लगता कि यह समूहों के बीच धार्मिक उत्तेजना पैदा करता है? क्या गांधी जी ने कभी इस भाषा का प्रयोग किया था? क्या भगत सिंह ने अंग्रेजी के खिलाफ इस भाषा का इस्तेमाल किया था? क्या गांधी जी ने हमें यही सिखाया है कि हम लोगों और उनके पूर्वज के खिलाफ ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं?”
भगत सिंह का अनुकरण करना मुश्किल- अदालत ने पूछा कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल इस तरह के आपत्तिजनक बयान देने में हो सकता है? क्या यह धारा 153A और धारा 153B (आईपीसी) के तहत नहीं आता है? यह स्वीकार्य नहीं है। हाईकोर्ट ने आगे कहा, “भगत सिंह का नाम लेना बहुत आसान है लेकिन उनका अनुकरण करना मुश्किल है। उन्हें अंत में फांसी दी गई, वह वहीं रहे, भाग नहीं गए। आप कह रहे हैं कि आप वहां थे ही नहीं।”
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने कहा कि अमरावती भाषण नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के संदर्भ में दिया गया था। सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट में उमर खालिद के वकील ने दलील दी कि दिल्ली दंगों के वक्त उमर खालिद मौजूद नहीं था.
निचली अदालत ने खारिज कर दी थी जमानत याचिका- खालिद और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड होने के मामले में आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी। निचली अदालत ने 24 मार्च 2020 को खालिद को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप पहली नजर में सही थे।
