दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार (27 जुलाई, 2022) को कहा कि वह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मंत्री सत्येंद्र जैन को उनके मंत्रिमंडल से हटाने का निर्देश नहीं दे सकता है। इसके साथ कोर्ट ने यह भी कहा कि वह उम्मीद करता है कि मुख्यमंत्री मंत्रियों की नियुक्ति करते समय मतदाताओं द्वारा उन पर किए गए विश्वास को बनाए रखेंगे।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की एक खंडपीठ ने इस मामले में दाखिल जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करते हुए ऐसा कहा। इस याचिका में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जैन की गिरफ्तारी के बाद सत्येंद्र जैन ने दिल्ली कैबिनेट से हटाने की मांग की गई थी।

पीठ ने कहा कि इस पर मुख्यमंत्री विचार करेंगे कि आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को मंत्री के रूप में बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के सदस्यों को चुनने और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से संबंधित नीति तैयार करने में अपने विवेक का प्रयोग करते हैं। भारत के संविधान की अखंडता को बनाए रखने में मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वो राज्य के हित में काम करें और यह विचार करें कि क्या कोई व्यक्ति जिसकी आपराधिक पृष्ठभूमि है, उन्हें मंत्री के रूप में बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।”

यह याचिका नंद किशोर गर्ग द्वारा वकील शशांक देव सुधी के माध्यम से दायर की गई थी। जैन को कैबिनेट से हटाने की मांग के अलावा, याचिका में मंत्रियों के इस्तीफे/निलंबन के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने की भी कोर्ट से मांग की गई थी।

कोर्ट ने कहा कि वह इस मुद्दे पर व्यापक दिशा-निर्देश नहीं बना सकता है और ना ही इस पर कोई निर्देश दे सकता है कि किसे विधायक के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। केंद्र या राज्य स्तर पर किसको मंत्री बनाया जाए यह बताने का भी कोर्ट को हक नहीं है।

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत कोई भी उच्च न्यायालय राज्य के मंत्री की नियुक्ति को समाप्त करने का निर्देश जारी करने के लिए सक्षम नहीं है।