दिल्ली के हज़ारों गेस्ट टीचर्स अब अपनी दशा और अधिकारों को लेकर सामूहिक रूप से माननीय उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। दिल्ली अतिथि अध्यापक मंच की ओर से एडवोकेट डॉ. एम. ए. अज़ीज़ ने जानकारी दी कि बहुत जल्द इस मामले में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की जाएगी।

गेस्ट टीचर्स का कहना है कि वे पिछले 12 सालों से स्कूलों में नियमित अध्यापकों की तरह पढ़ा रहे हैं। जिम्मेदारियां भी वही निभा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अस्थायी मजदूरों जैसी स्थिति में रखा गया है। न तो उन्हें बराबर वेतन दिया जाता है और न ही वे सुविधाएँ, जो स्थायी शिक्षकों को मिलती हैं। उनका आरोप है कि सरकार उनकी मेहनत और योगदान को नज़रअंदाज़ कर रही है।

डॉ. अज़ीज़ ने बताया कि प्रस्तावित PIL में संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 39(d) (समान कार्य के लिए समान वेतन) का लगातार हो रहा उल्लंघन अदालत के सामने रखा जाएगा। मंच का कहना है कि यह केवल व्यक्तिगत हित की लड़ाई नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों के सम्मान से जुड़ा बड़ा मुद्दा है।

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याचिका में लगभग 100 गेस्ट टीचर्स के अनुभव प्रमाणपत्र भी जोड़े जाएंगे, ताकि यह साबित किया जा सके कि वे वर्षों से पूरी निष्ठा और दक्षता के साथ पढ़ा रहे हैं। इसके अलावा अन्य राज्यों में गेस्ट टीचर्स को दी जा रही सुविधाओं और दिल्ली की स्थिति का तुलनात्मक ब्यौरा भी न्यायालय को सौंपा जाएगा। मंच का मानना है कि पहले अदालत में जो भी प्रयास हुए, वे केवल व्यक्तिगत हितों तक सीमित थे, लेकिन यह पहल व्यापक जनहित को सामने रखकर की जा रही है।

गेस्ट टीचर्स की स्पष्ट मांग है कि सरकार उनके लिए एक स्थायी और सम्मानजनक नीति बनाए। समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया जाए और भेदभावपूर्ण रवैये को खत्म कर शिक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाया जाए। उनका कहना है कि अब समय आ गया है जब सरकार को उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें हक और सम्मान देना ही होगा।