दिल्ली सरकार ने राजधानी में आवारा कुत्तों की गिनती के लिए स्कूल शिक्षकों की ड्यूटी लगाने का फैसला किया है। इसे लेकर एक विस्तृत आदेश भी जारी किया गया है। आदेश में साफ कहा गया है कि इस कार्य में सरकारी और निजी, दोनों तरह के स्कूलों के शिक्षक शामिल होंगे।
दिल्ली के शिक्षा निदेशालय का तर्क है कि आम लोगों, खासकर बच्चों की सुरक्षा के लिए आवारा कुत्तों की गिनती करना जरूरी है। इसे सुप्रीम कोर्ट के नवंबर में आए आदेश के पालन के रूप में भी बताया गया है। जानकारी के मुताबिक, दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। सरकारी और निजी स्कूलों के आसपास भी बड़ी संख्या में आवारा कुत्ते देखे जा रहे हैं।
इसी वजह से प्रशासन ने फैसला किया है कि स्कूलों के आसपास मौजूद आवारा कुत्तों की गिनती का जिम्मा शिक्षकों को सौंपा जाए। आदेश के अनुसार, जितने भी कुत्ते स्कूल परिसरों और आसपास के इलाकों में नजर आएंगे, उनका रिकॉर्ड शिक्षकों को रखना होगा। शिक्षकों को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि वे इस बात पर नजर रखें कि ये कुत्ते कहां-कहां घूम रहे हैं और क्या किसी भी तरह से बच्चों के लिए खतरा बन रहे हैं। अगर किसी तरह का खतरा नजर आता है, तो इसकी तुरंत सूचना संबंधित विभाग को देनी होगी।
हालांकि, दिल्ली के शिक्षकों ने इस फैसले का स्वागत नहीं किया है। कई शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षकों का मुख्य काम पढ़ाना है, न कि आवारा कुत्तों की गिनती करना। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से जरूरी बता रहे हैं, जबकि कई लोगों का कहना है कि सरकार को इसके लिए अलग से स्टाफ या एजेंसी नियुक्त करनी चाहिए।
वैसे जो विवाद आवारा कुत्तों की गिनती को लेकर शुरू हुआ है, एसआईआर प्रक्रिया को लेकर भी शिक्षकों में रोष है। वहां भी तर्क दिया जा रहा है कि शिक्षकों का काम बच्चों को पढ़ाना है ना कि घर-घर जाकर दस्तावेज इकट्ठा करना।
