राजधानी में नगर निगम चुनावों को लेकर नेताओं के पार्टी बदलने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। टिकट नहीं मिलने की आशंका को भांपते हुए पूर्व विधायक, निगम पार्षद, पूर्व निगम पार्षद और कई बार चुनाव लड़ चुके प्रत्याशी पाला बदलने लगे हैं। कई बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके एक पूर्व प्रत्याशी ने तो अपनी पत्नी और समर्थकों के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज पार्टी का दामन थामा लिया। उन्हें सदस्यता दिलवाने के लिए एक नहीं दो-दो विधायक पार्टी कार्यालय में उपस्थित थे। उनमें से एक विधायक वह भी थे, जिन्होंने नेता जी को हार का स्वाद चखाया था।

पर इस दौरान एक ऐसा वाकया घटा, जिसकी वजह से सदस्यता दिलवाने वाले विधायक जी अपने बगले झांकते नजर आए। बेदिल को पता लगा कि हुआ यह कि पार्टी में शामिल होने वाले नेता जी ने पूछा कि जिन्होंने पार्टी की सदस्यता उन्हें दिलवाई है, उनका नाम क्या है? यह सुनते उनके बगल में बैठे विधायक जी हैरान-परेशान दिखे। मौके की नजाकत को भांपते हुए उनके कान में विधायक जी का नाम बताया गया, जिसके बाद पार्टी में शामिल होने वाले नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया।

मौसम और फरमान

दिल्ली को लंदन सरीखे बनाने की आम आदमी पार्टी की सरकार के लक्ष्य का दावा बीते दिनों बसों में भी चर्चा का केंद्र बना हुआ है। बात विकास से ऊपर की हो रही थी। दरअसल बीते दिनों दिल्ली के मौसम ने अचानक करवट ली और दिन के तापमान में खासी बढ़ोतरी दर्ज हो गई। ऐसे में बसों में सफर कर रही कई महिलाओं ने एसी चलाने की दरखास्त चालक से कर दी। लेकिन चालक के जवाब ने सबको चौंका दिया। कहा कि अभी एसी नहीं चलेंगें, जब सरकार की ओर से आदेश मिलेगा तभी बसों में एसी चल पाएग। बेदिल वहीं खड़ा सबकुछ सुन रहा था।

यह अलग बात है कि सरकार से ज्यादा अत्याधुनिक मौसम इन दिनों साबित हो रहा है। मौसम तुरंत करवट बदलता है, असर घंटों में नजर आने लगता है। लेकिन इससे उलट दिल्ली सरकार का डीटीसी महकमा है,जिसे बसों में ब्लोअर की जगह ऐसी चलाने की प्रक्रिया शुरू करने में ही कई दिन लग जाते हैं। इतना तो तय है कि राजधानी दिल्ली को लंदन सरीखे बनाने का दिल्ली सरकार का दावा इस पैमाने पर खोखला है।

अपना-अपना मुद्दा

दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित विधानसभा नोएडा में इन दिनों चुनावी प्रचार अपने चरम पर है। इस मर्तबा चुनावों में किसी एक मुद्दे या मुद्दों के हावी नहीं होने से विभिन्न राजनैतिक दलों से मैदान में उतरे प्रत्याशी अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर मुद्दे तय कर लोगों के बीच जा रहे हैं। प्रदेश में सत्ताधारी दल से इतर निर्दलीय समेत अन्य दलों के प्रत्याशी केवल चुनिंदा लोगों और इलाकों तक ही अपने आप को केंद्रित रखकर प्रचार में जुटे हैं। मसलन पूर्व कांग्रेसी रहे बसपा प्रत्याशी केवल गांवों और ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले इलाकों तक पहुंचकर वहां के लोगों की समस्याओं को दूर कराने का दावा कर समर्थन मांग रहे हैं।

फ्लैट खरीदार संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फ्लैट खरीदारों तक ही अपने आप को सीमित रख रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से केवल कच्ची कालोनियों में बिजली,पानी, सीवर और रजिस्ट्री के मुद्दों को उठाया जा रहा है। कमोबेश सपा-रालोद के प्रत्याशी भी अपने पकड़ वाले इलाकों तक ही अपने को सीमित रखे हैं। हालांकि भाजपा प्रत्याशी भी सभी जगह के बजाए सेक्टरों के गणमान्य व्यक्तियों के यहां जन संवाद और खास जगहों पर जाने को अहमियत दे रहे हैं।

काम से बड़ा नाम

अखबार में नाम कहानी तो बहुत पहले से प्रचलित है। किस तरह साइकिल पर सवार व्यक्ति को दुर्घटनाग्रस्त दिखाते हैं और बदले में उनकी चाहत थी कि उनका नाम अखबार में छप जाए। लेकिन पुलिस वाले भी अपना नाम छपवाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। बेदिल को यह पिछले दिन दिल्ली में देखने को मिला। एक महिला से दुर्घटनावश गोली चल गई और गोली एक बच्चे को लग गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पीड़ित परिवार पुलिसिया डर से गोलीबारी की इस घटना को दूसरा रूप देते हुए रास्ते पर बदमाशों के हाथों गोली मारने की कहानी पुलिस को बताई।

लेकिन जांच में घर की महिलाओं का बयान विरोधाभास लगा और सख्ती से जांच और पूछताछ में पता चला कि गोली घर की एक महिला से चली थी। फिर अब फोटो खिंचाने का खेल शुरू हुआ और संबंधित थाने की पुलिस ने उन दोनों महिलाओं सास और बहु को गिरफ्तार कर थाने में उनके साथ फोटो खिंचवाया। अब भला अगर बिना फोटो और पहचान के उन दोनों महिलाओं को कानून के मुताबिक कार्रवाई होती तो क्या इससे कुछ छूट जाता। तभी बेदिल को पता चला कि आखिर अखबार में नाम वाली कहावत यूं ही प्रचलित थोड़े ही है?

नहीं चला दांव

निगम में रोटेशन (सीटों की अदला-बदली) में कई ऐसे चेहरे इस बार सदन में नहीं दिखेंगे जिनकी चालाकी काम नहीं कर सकी। दरअसल कांग्रेस की डूबती नैया को छोड़ कुछ वरिष्ठ पार्षद आप पार्टी में चले गए। लेकिन कहते हैं समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला। अब उन सभी कांग्रेसी पार्षदों के सीट रोटेशन में ऐसी-तैसी हो गई। किसी का सामान्य था तो आरक्षित, किसी का महिला था तो पुरुष और कोई पुरुष था तो महिला सीट हो गया। अब तो यही कहा जा सकता है कि ऐसे पार्षदों का नहीं चला दांव।
बेदिल