गुजरात हाई कोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने में ‘देरी से प्रतिक्रिया’ पर सीएम विजय रूपाणी सरकार और सूरत प्रशासन की खिंचाई की है। हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी तब की जब चीफ जस्टिस (HC) विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पादरीवाल की खंडपीठ राज्य में कोविड-19 की स्थिति से संबंधित जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। सूरत में पिछले एक महीने से कोरोना के अधिक से अधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य और शहर का प्रशासन सूरत की मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार है, जहां हालात बद से बदतर हो गए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग जानता था कि सूरत में कुछ ही समय में कोरोना विस्फोट होगा। हमें सूचित किया गया है कि टेस्टिंग की संख्या भी नहीं बढ़ाई गई। जैसे-जैसे सूरत में स्थिति खराब होती चली गई और उसी का असर पूरे दक्षिणी गुजरात में देखने को मिल रहा है। खासकर ग्रामीण इलाके सबसे अधिक प्रभावित हैं। सूरत में मृत्युदर भी काफी अधिक है।
कोर्ट ने अब राज्य सरकार से आठ मामलों में जल्द से जल्द एक रिपोर्ट मांगी है। जिसमें कोरोना रोकथाम के लिए सूरत स्वास्थ्य विभाग द्वारा उठाए गए कदम, कोरोना का इलाज करने वाले हॉस्पिटल, आइसोलेशन बेड की डिटेल और अन्य महत्वपूर्ण देखभाल सुविधाएं, गरीब मरीजों के लिए प्राइस रेगुलेशन और बेड की उपलब्धता, हॉस्पिटलों में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या, कोविड केयर सेंटर्स, होम आइसोलेशन सुविधा और कोरोना से होने वाली मौतों को रोकने के लिए किए गए उपाय।
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हाई कोर्ट ने गुजरात में कहीं और संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए की गई कार्रवाई की भी जानकारी मांगी। इसके अलावा सूरत के हीरा और कपड़ा उद्योगों के कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी। पीठ ने आगे कहा कि सूरत राज्य में महामारी का केंद्र बन गया है जहां गुजरात के हर पांच मामलों में से औसतन एक मामला दर्ज किया जा रहा है।