हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई है। इन दोनों ही राज्यों में मिड डे मील के मेन्यू को लेकर राज्य सरकार का रुख अलग-अलग है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने पूर्व की बीजेपी सरकार के अंडे पर रोक के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, छत्तीसगढ़ में बुधवार को अंडे को मिड डे मील में शामिल कर लिया गया। छत्तीसगढ़ के स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से यह हिदायत दी गई है कि अगर किसी बच्चे या उसके घरवालों को अंडे पर आपत्ति है तो इसके विकल्प के तौर पर दूध या कोई दूसरा पौष्टिक आहार दिया जाए। हालांकि, राज्य सरकार के इस फैसले पर बीजेपी ने नाखुशी जताई है।
मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां कांग्रेस की अपने दम पर बहुमत की सरकार नहीं है। ऐसे में पार्टी बेहद सधे तरीके से इस मामले में आगे बढ़ रही है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल में आंगनबाड़ियों में अंडे पर रोक लगाई थी। राज्य सरकार फिलहाल इस रोक को जारी रखने या खत्म करने पर आधिकारिक फैसला नहीं ले पाई है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में हाल ही में इस मुद्दे पर चर्चा हुई लेकिन कोई फैसला नहीं लिया गया।
वहीं, भोपाल के राइट टु फूड कैंपेनर सचिन जैन का मानना है कि राज्य की बड़ी आदिवासी आबादी अंडे को आंगनबाड़ी में परोसे जाने वाले खाने के मेन्यू में शामिल करने के फैसले का स्वागत करेगी। उनका कहना है कि एक वर्ग के दबाव में इन लोगों को प्रोटीन युक्त आहार से वंचित रखा गया। बता दें कि 2010 में चौहान ने जैन समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि उनके कार्यकाल में कभी भी अंडा परोसा नहीं जाएगा। 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की आबादी में जैनों की हिस्सेदारी 0.78 पर्सेंट है।
हालांकि, छत्तीसगढ़ के सीनियर बीजेपी नेता सच्चिदानंद उपासने ने राज्य सरकार के फैसले पर नाखुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे ऐसे लोग हैं, मसलन ब्राह्मण और अन्य बहुसंख्यक समुदाय के लोग, जो नॉनवेज खाना नहीं खाते और इसके पास भी नहीं जाना चाहते। अगर अंडे देने की इतनी ज्यादा प्राथमिकता है तो सरकार को उन्हें घर पर पहुंचाना चाहिए, सार्वजनिक स्थलों पर नहीं परोसना चाहिए। यह फैसला परंपराओं को बिगाड़ने जैसा है।’
हालांकि, स्कूल एजुकेशन सेक्रेटरी गौरव दि्वेदी ने बताया, ‘अंडा अनिवार्य नहीं है, जैसा कि आदेश में भी कहा गया है। अगर लोग दूसरे आइटम चुनते हैं तो उन्हें उपलब्ध कराया जाएगा। यह साफ है कि पौष्टिक तत्वों की कमी का असर पढ़ाई पर पड़ता है।’