ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) के संपर्क में आने से स्वास्थ्य और कल्याण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव केवल सुनने की क्षमता में कमी तक ही सीमित नहीं हैं। इसके कारण झुंझलाहट, नींद में खलल, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, चिंता, हृदय रोग, बच्चों में हानि और यहां तक कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर डिप्रेशन भी हो सकता है। PGIMER के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल (जो इस स्टडी के प्रमुख रिसर्चर हैं) ने डॉ. अविनाश श्रॉफ और डॉ. सुमन मोर के साथ मिलकर इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में चंडीगढ़ में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर एक रिसर्च अध्ययन प्रकाशित किया है।
कैसे की गई स्टडी?
यह अध्ययन चंडीगढ़ में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर डेली शोर के संपर्क के गैर-श्रवण और श्रवण प्रभावों की जांच पर आधारित है। एक क्रॉस-सेक्शनल डिज़ाइन का उपयोग करते हुए अध्ययन में ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में आने वाले 100 ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की तुलना शांत कार्यालय वातावरण में काम करने वाले उतने ही पुलिसकर्मियों के एक नियंत्रण समूह से की गई।
PGIMER (चंडीगढ़) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के डॉ. खैवाल कहते हैं, “चंडीगढ़ के विभिन्न चौराहों और पुलिस थानों पर लगभग 422 ट्रैफ़िक पुलिसकर्मी तैनात थे। चंडीगढ़ पुलिस विभाग से कुल 200 पुलिसकर्मी (प्रत्येक समूह से 100) चुने गए थे। ट्रैफ़िक कर्मियों ने पांच प्रमुख गैर-श्रवण प्रभावों की सूचना दी। इसमें सिरदर्द, नींद न आना, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप और तनाव शामिल था। ये पांच प्रभाव 80 प्रतिशत से ज़्यादा ट्रैफ़िक कर्मियों और 60 प्रतिशत सामान्य पुलिसकर्मियों को प्रभावित करते हैं।”
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डॉ. खैवाल बताते हैं, “काई-स्क्वायर परीक्षण ने ट्रैफ़िक पुलिसकर्मियों में उनके कार्यालय-आधारित समकक्षों की तुलना में तनाव और चिड़चिड़ापन के बीच महत्वपूर्ण संबंध दिखा। श्रवण प्रभावों के मूल्यांकन से पता चला कि 56 प्रतिशत ट्रैफ़िक पुलिसकर्मियों में टिनिटस (बाहरी स्रोत से न आने वाली आवाज़ें सुनने की स्थिति) के लक्षण देखे गए, जबकि सामान्य पुलिसकर्मियों में यह संख्या 29 प्रतिशत थी।”
चंडीगढ़ के विभिन्न यातायात जंक्शनों पर डेली ध्वनि स्तर (जो दिन के समय होता है) एयरपोर्ट लाइट पॉइंट जंक्शन के पास सबसे अधिक (79.9-78.8 डीबी) और सुखना झील प्रवेश बिंदु पर सबसे कम (72.0-69.89 डीबी) था। सभी स्थानों पर औसत ध्वनि स्तर व्यस्त और गैर-व्यस्त घंटों के दौरान 76.04 से 75.30 डीबी के बीच रहा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा यातायात क्षेत्रों के लिए 65 डीबी की सीमा से काफी अधिक है।
पुलिसकर्मियों को नहीं है अधिक जानकारी
अध्ययन में पाया गया कि अधिकांश यातायात पुलिसकर्मी ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से अनजान थे और इसे व्यावसायिक खतरा नहीं मानते थे। The National Programme for Prevention and control of Deafness ने सुनने में कठिनाई को मनुष्यों में सबसे आम विकार माना है। राष्ट्रीय व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संस्थान के दिशानिर्देशों के अनुसार ध्वनि स्तर 85 dB (A) की सीमा से ऊपर के संपर्क में आने से सुनने की क्षमता में कमी हो सकती है।
डॉ ख़ैवाल कहते हैं, “ट्रैफिक पुलिसकर्मी (जो यातायात प्रबंधन करते समय लगातार उच्च ध्वनि स्तर के संपर्क में रहते हैं) ध्वनि प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जोखिम समूह माने जाते हैं। चंडीगढ़ में भारत में सबसे अधिक वाहन घनत्व है। यह आंकड़ा 4400 वाहन/किमी है, जो दिल्ली से लगभग दोगुना है। चंडीगढ़ के 11 प्रमुख यातायात जंक्शनों पर ध्वनि के स्तर का आकलन किया गया और व्यस्त और गैर-व्यस्त दोनों घंटों के दौरान कम से कम 30 मिनट के लिए ध्वनि के स्तर को रिकॉर्ड किया गया। हरेक प्वाइंट पर दो बार माप लिया गया।
चंडीगढ़ में व्यस्त समय के दौरान यातायात जंक्शनों पर शोर का स्तर 72 से 79.89 डेसिबल के बीच रहा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा यातायात क्षेत्रों के लिए निर्धारित 65 डेसिबल की सीमा से अधिक था। अध्ययन से पता चला है कि 96 प्रतिशत यातायात पुलिसकर्मी प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक शोर भरे वातावरण में बिताते हैं, जबकि उनके सामान्य समकक्षों में यह संख्या 69 प्रतिशत है। इसके बावजूद, अधिकांश पुलिसकर्मियों ने ध्वनि प्रदूषण से खुद को बचाने के लिए इयरप्लग या इयरमफ जैसे व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपायों का उपयोग नहीं किया।
इस अध्ययन के निष्कर्ष से पता चलता हैं कि ध्वनि प्रदूषण यातायात पुलिसकर्मियों में तनाव, चिड़चिड़ापन और उच्च रक्तचाप का एक महत्वपूर्ण कारण है। लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहने से तनाव सहित कई प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। पर्यावरणीय शोर के लगातार संपर्क में रहने से कई गैर-श्रवण स्वास्थ्य प्रभाव जुड़े हुए हैं, जिनमें नींद में खलल, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, तनाव, हृदय रोग और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।