गजेंद्र सिंह

अपनी स्थापना के सौ साल की दौड़ पूरी करने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय दसवां विश्वविद्यालय बन गया है। तमाम झंझावत को पार करते हुए विश्वविद्यालय इस पड़ाव पर खड़ा है कि वह शताब्दी समारोह का जश्न भी वित्तीय संकट के बीच मना रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से सौ साल पूरा करने वाले विश्वविद्यालयों को दी जाने वाली अनुदान राशि भी बंद हो चुकी है और लखनऊ विश्वविद्यालय को अपनी विरासत संभालने को यह मदद भी नहीं मिल पाएगी। वित्तीय संकट से जूझ रहे लखनऊ विश्वविद्यालय को राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान भी 1994 से बंद है।

लखनऊ विश्वविद्यालय अपने कुल बजट का करीब 150 करोड़ रुपए वेतन पर खर्च करता है। राज्य सरकार की ओर से विश्वविद्यालय को तीन करोड़ रुपए ही दिए जाते हैं। सरकार के पास विश्वविद्यालय के वेतन हिस्से का करीब 160 करोड़ रुपए आता है लेकिन अनुदान बंद किए जाने की वजह से यह भार विश्वविद्यालय प्रशासन को खुद वहन करना पड़ता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एसपी सिंह बताते हैं कि 1994 में तमाम अनियमितताओं के बाद सरकार ने विवि का अनुदान फ्रीज (रोक) कर दिया। विश्वविद्यालय में कई सालों से पदों के लिए विज्ञापन नहीं निकले लेकिन भर्तियां होती गर्इं। कई प्राध्यापक भी इसी के तहत भर्ती हुए जो अच्छी तनख्वाह पाते हैं। विश्वविद्यालय खुद से 120 करोड़ रुपए कमाता है जबकि उसका वेतन पर खर्च 150 करोड़ रुपए से अधिक होता है। ऐसे में विश्वविद्यालय अपने कई कार्यों को करने में असमर्थ है।

डॉ. एसपी सिंह बताते हैं कि यूजीसी की ओर से सौ साल पूरे करने वाले विश्वविद्यालयों को अच्छी खासी धनराशि दी जाती थी, लेकिन पिछली पंचवर्षीय योजना के तहत यह बंद कर दिया गया और फंड करने का प्रारूप बदल दिया गया। डॉ. एसपी सिंह कहते हैं कि अगर यूजीसी की ओर से यह धनराशि मिलती तो विश्वविद्यालय अपनी हालत को सुधार सकता था। क्योंकि 165 साल हो गए इस भवन को जिसके जीर्णोद्धार के लिए काफी रुपए लगेंगे। लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष नीरज जैन कहते हैं कि विश्वविद्यालय के सौ वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार से मांग है कि इसे विशेष दर्जा दिया जाए जिससे इसकी अहमियत बनी रहे। यूजीसी से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि सौ साल पूरे होने पर जो दस करोड़ रुपए की अनुदान राशि दी जाती थी उसे 12वीं योजना के तहत बंद कर दिया गया है। यह 2012 से 2017 तक चलाई गई थी।

गौरवशाली है इतिहास

एक मई, 1864 को हुसैनाबाद कोठी में शुरू हुए एक कॉलेज को अंग्रेज गर्वनर की याद में बने कैनिंग कॉलेज को 1920 में विश्वविद्यालय का रूप दिया गया और 1921 में विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई। 178 कॉलेजों के साथ एक लाख 60 हजार विद्यार्थियों वाले इस विश्वविद्यालय की काफी रकम वेतन के बाद परीक्षा आयोजित करने में खर्च होती है। विश्वविद्यालय के साथ काफी पुराना 1870 का आइटी महिला कॉलेज भी जुड़ा हुआ है। इससे पहले किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भी जुड़ा था, जिसे 2000 के बाद अलग विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय पहला ऐसा विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना आवासीय विवि के रूप में हुई थी जबकि अन्य की सिर्फ संबद्धता के लिए की गई थी। इलाहाबाद विवि को 1887 में स्थापना के 33 साल बाद 1920 में आवासीय विवि स्थापित किया गया।

याद रहेगा विश्वविद्यालय का अतीत

1928 में पंडित नेहरू को बचाने के लिए यहां के छात्रों ने लाठियां खाई थीं। 1929 में महात्मा गांधी और सरोजनी नायडू का भाषण हो चुका है। जेपी आंदोलन का भी गवाह रहा है यह विश्वविद्यालय। विश्वविद्यालय से निकले शंकर दयाल शर्मा ने देश के राष्ट्रपति का पदभार संभाला। राजनेता हरीश रावत, केसी पंत, सुरजीत सिंह बरनाला, विजयराजे सिंधिया, राम गोविंद चौधरी, दिनेश शर्मा, इसरो की ऋतु करिधल, गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य, क्रिकेटर सुरेश रैना और कई जाने-माने पत्रकार यहां से पढ़े हुए हैं।