राजधानी की व्यापारिक संस्थाओं ने मजदूरों और कामगारों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के आप सरकार के कदम का विरोध किया है। व्यापारिक संस्थाओं का कहना है कि केजरीवाल सरकार ने पंजाब चुनावों को लेकर यह कदम जल्दबाजी में उठाया है। दिल्ली में उद्योग धंधे न के बराबर हैं। यहां अन्य राज्यों से सामान आता है, जो दोबारा अन्य राज्यों में ही चला जाता है। नेताओं का कहना है कि पहले ही राजधानी के व्यापारी विभिन्न करों और बिजली के भारी-भरकम बिलों के बोझ तले दबे हैं, ऐेसे में सरकार ने उन पर एक और बोझ लाद दिया है। व्यापारी नेताओं ने सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग भी की है।

दिल्ली की सबसे पुरानी देहली हिंदुस्तानी मर्केंटाईल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश बिंदल ने बढ़ाई गई न्यूनतम मजदूरी का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने यह कदम बिना सोचे-समझे उठाया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सारा ध्यान पंजाब के चुनाव पर है। पंजाब में जगह-जगह फैक्टरियां हैं, जहां हजारों मजदूर काम करते हैं। केजरीवाल उन्हें यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार ने दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई है, और अगर वे पंजाब में सत्ता में आते हैं, तो वहां भी न्यूनतम मजदूरी बढ़ाएंगे।

उन्होंने कहा कि दिल्ली और पंजाब के व्यापार में जमीन-आसमान का अंतर है। वहां पर उद्योग धंधे हैं और दिल्ली में सामान का वितरण होता है। दिल्ली में आसपास के राज्यों की तुलना में पहले ही से न्यूनतम मजदूरी 20 से 30 फीसद ज्यादा है। अब दिल्ली सरकार के इस फैसले से यह अन्य राज्यों की तुलना में करीब 80 फीसद ज्यादा हो जाएगी। उन्होंने दिल्ली सरकार से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग की है।

दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट आॅर्गनाइजेशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने भी न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को लगता है कि गरीब महंगाई में पिस रहा है जबकि असलियत यह है कि इस वक्त कारखाने और व्यापार चलाना ही मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि व्यापारियों को फिलहाल वैट, पीएफ, ईएसआइ, इनकम टैक्स, हाउस टैक्स, सर्विस टैक्स,और एक्साइज ड्यूटी भरना ही महंगा पड़ रहा है, ऐसे में सरकार ने उन पर एक बोझ और डाल दिया है।

कन्फरेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स की दिल्ली इकाई के चेयरमैन नरेंद्र मदान ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली का व्यापारी पहले ही बड़ी मुश्किल से अपने कामगारों को मजदूरी दे पाता है, ऐसे में सरकार ने उस पर एक और बोझ डाल दिया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला पंजाब चुनाव को लेकर उठाया गया है। केजरीवाल को दिल्लीवासियों से ज्यादा पंजाब के मतदाताओं की चिंता है।

भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के उपाध्यक्ष और व्यापारी नेता विजय जैन ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने व्यापारिक संस्थाओं से बात किए बिना ही फैसला ले लिया। फैसला लेने से पहले सरकार ने इस मामले को लेकर एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी में बड़े उद्योगपतियों की संस्था फिक्की और सीआइआइ के प्रतिनिधि थे। उन्ही के कहने पर सरकार ने यह कदम उठाया। उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार को उस कमेटी में व्यापारिकी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को भी शामिल करना चाहिए था, जिससे कि हम अपना पक्ष रख पाते।