Brahmins In UP Politics : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इसके मद्देनजर सियासी गतिविधियां भी तेज होती जा रही हैं। हर पार्टी जनता के बीच जाकर उनकी नब्ज टटोलने और अपनी पैठ बनाने की कोशिश करने में जुटी हुई है। हालांकि इस बार जातीय समीकरणों पर ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है। भाजपा, सपा, बसपा और अन्य क्षेत्रीय दल भी जातिगत हिसाब-किताब के इर्द गिर्द (Brahmins In UP Politics) अपनी योजना का ताना बाना बुन रहे हैं।

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इसी सिलसिले में लखनऊ में ब्राह्मण समाज का प्रबुद्ध सम्मेलन आयोजित किया है। इसमें सम्मान, सुरक्षा और तरक्की को मुद्दा बनाया गया है। मायावती साल 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने सियासी समीकरणों को सुधारना चाहती हैं। इस सम्मेलन के जरिए वो राज्य के 74 जिलों की जनता के मिजाज को भांपने की कोशिश करने में जुटी हैं।

उल्लेखनीय है कि 2007 में मायावती ने दलित ब्राह्मण गठजोड़ का फार्मूला आजमाया था, जिसका परिणाम सत्ता के रूप के सामने आया था। बसपा ने इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था। उस चुनाव में मायावती ने ब्राह्मण वोटबैंक को साधा था। 86 ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिसमें से 41 को जीत मिली थी।

हालांकि इस बार अन्य दल भी इस सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाकर सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। अंदरूनी कलह झेल रही कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने जून में भाजपा का दामन थाम लिया था। उनके भाजपा में शामिल होने को पार्टी के मिशन यूपी 2022 की शुरुआत के तौर पर देखा गया था। जितिन प्रसाद ब्राह्मण नेता हैं और उनको पाले में लाकर भाजपा ब्राह्मणों में संदेश देना चाहती है कि पार्टी उनके साथ है।

भाजपा ने जितिन को इसलिए भी साधा क्योंकि वो पिछले दो-तीन सालों से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ ब्राह्मणों के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए प्रदेश भर के ब्राह्मणों को भाजपा के खिलाफ गोलबंद करने में जुटे थे। उन्होंने ब्राह्मण चेतना परिषद बनाकर सोशल मीडिया के जरिए प्रदेश के सभी जिलों के ब्राह्मण नेताओं को पत्र भेजकर ब्राह्मणों की कथित उपेक्षा उत्पीड़न और हत्याओं के खिलाफ एकजुट होकर सरकार का विरोध करने का आह्वान भी किया था। लेकिन भाजपा ने उन्हें अपने साथ मिलाकर न केवल विरोध के रास्ते को बंद किया बल्कि ब्राह्मणों के साथ होने का संदेश भी दिया।

अखिलेश यादव का ब्राह्मण सम्मेलन: जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में समाजवादी पार्टी ने भी ब्राह्मण वोट बैंक को साधने (Brahmins In UP Politics) के लिए सम्मेलन आयोजित किया था। यूपी के बलिया जिले से शुरू हुए इस सम्मेलन में पार्टी अपने ब्राह्मण नेताओं के जरिये राजनीतिक समीकरण को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही है।

मायावती का प्रबुद्ध सम्मेलन या चुनावी दांव: मायावती, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद आज पहली बार किसी सार्वजनिक मंच पर नजर आईं। इस सम्मेलन के जरिए वह अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को पार्टी का एजेंडा पेश करती हुई दिखाई दीं। बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और मायावती के सबसे करीबी नेता सतीश चंद्र मिश्रा भी कह चुके हैं कि यदि प्रदेश के 13 फीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलित भाईचारा कायम कर लें तो राज्य में बसपा की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता है।

UP में ब्राह्मण पर फोकस क्यों: उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 13 फीसदी (Brahmins In UP Politics) के करीब मानी जाती है। 1990 तक सूबे की सत्ता पर ब्राह्मणों का राज हुआ करता था लेकिन मंडल की राजनीति के बाद समीकरण तेजी से बदलने लगे और ब्राह्मण सिर्फ वोटबैंक तक सीमित रह गया लेकिन पूर्वांचल से लेकर अवध और रुहेलखंड तक आज भी कई सीटों पर इस फैक्टर का प्रभाव काम करता है। हार और जीत ब्राह्मणों के मिजाज से तय होती है। ऐसे में बसपा से लेकर बीजेपी तक, इस वोटबैंक को साधने की कवायद में जुटे हुए हैं।

2017 के चुनावों में ब्राह्मणों की पसंद BJP: उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनावों में ब्राह्मणों का आशीर्वाद बीजेपी को मिला था। प्रदेश में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते थे, जिनसें से बीजेपी के 46 विधायक थे।

किस जाति के कितने मतदाता: उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति बड़ा फैक्टर माना जाता है। कई क्षेत्रिय दल इसी फैक्टर के भरोसे सालों से अपनी राजनीति करते रहे हैं। ऐसे में यह जान लेना भी जरूरी है कि किस जाति वर्ग के कितने वोट हैं। विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी के करीब दलित वोट बैंक हैं, वहीं ब्राह्मण 13 फीसदी (Brahmins In UP Politics) है, इसके अलावा ठाकुर 8.5 फीसदी और यादव 9 प्रतिशत के करीब हैं। इसके अलावा मुस्लिम 19 फीसदी, 3 प्रतिशत कुर्मी और अन्य 24 प्रतिशत हैं।

एक नजर इस महत्वपूर्ण फैक्टर पर:
* दलित – 20 फीसदी
* मुस्लिम – 19 फीसदी
* ब्राह्मण – 13 फीसदी
* यादव – 9 प्रतिशत
* ठाकुर – 8.5 फीसदी
* कुर्मी – 3 प्रतिशत
* अन्य – 24 प्रतिशत