बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को निजी फ्लैट या घरों के अंदर इस बकरीद पर पशुओं की कुर्बानी पर रोक लगाने के अपने पिछले आदेश को संशोधित करने से इनकार कर दिया। अदालत ने हाउसिंग सोसाइटियों में इस तरह की कुर्बानी के लिए कुछ दिशा निर्देश भी दिए थे। इस मामले में यहां के निवासियों और कुछ निजी संगठनों के एक समूह ने गुरुवार को अदालत का रुख किया और कम से कम इस साल के लिए हाउसिंग सोसाइटियों के अंदर सार्वजनिक क्षेत्रों में कुर्बानी करने की अनुमति मांगी थी।
पशुओं के कुर्बानी देने पर लगा दी थी रोकः गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति जीएस पटेल की खंडपीठ ने मंगलवार को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को बकरीद के पर्व पर आवासीय फ्लैटों के अंदर पशुओं की कुर्बानी देने की अनुमति देने पर रोक लगा दी थी। हालांकि खंडपीठ ने यह भी कहा कि धार्मिक स्थलों और सामुदायिक हॉल के एक किलोमीटर के दायरे के अंदर स्थित आवासीय सोसायटी को बीएमसी निर्देश दे सकता है कि सोसायटी परिसर के बजाए वहां कुर्बानी कर सकते हैं।
एक किलोमीटर निर्देश को हटाने का किया आग्रहः याचिकाकर्ताओं ने गुरुवार को अदालत से आग्रह किया कि एक किलोमीटर वाले निर्देश को हटा दिया जाए क्योंकि मौजूदा सामुदायिक स्थलों में से अधिकांश कुर्बानी के लिए अपर्याप्त हैं। पीठ ने, हालांकि, यह कहते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया कि वह “सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता” बनाए रखने में हस्तक्षेप करने वाली किसी भी चीज की अनुमति नहीं दे सकता है। यह कहा गया कि मुंबई “दुनिया का एकमात्र शहर” नहीं है, जहां बकरीद के लिए कुर्बानी दी जानी है।
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शहर में 300 से अधिक कक्ष मौजूदः पीठ ने कहा कि दुनिया के कई शहर इस तरह की कुर्बानी की अनुमति देते हैं, लेकिन कहीं भी इसे खुले में रखने की अनुमति नहीं है। अदालत ने बीएमसी के वकील अनिल सखरे की इस बात पर ध्यान दिया कि बीएससी ने इस बकरीद पर शहर में 2,50,000 पशुओं के वध की व्यवस्था की है। सखरे ने यह भी कहा कि शहर में मांस की दुकानों से जुड़े 300 से अधिक ऐसे “वध कक्ष” मौजूद हैं जहां अब कामकाज नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस स्थान का इस्तेमाल हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा वध के लिए अनुशंसित सामुदायिक स्थानों के रूप में किया जा सकता है। पीठ ने हालांकि, आवास समितियों को अपने संबंधित परिसरों में वध करने के लिए बीएमसी के समक्ष आवेदन करने की अनुमति दी और उसे निर्देश दिया कि वह इस उच्च न्यायालय के 6 अगस्त के आदेश को ध्यान में रखते हुए अपने विवेक का उपयोग करें।