मैसूर मेयर पद के लिए हुए चुनाव में बीजेपी ने बड़ा उलटफेर करते हुए त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हासिल कर ली है। यह पहली बार है जब बीजेपी ने इस पद पर मैसूर में कब्जा जमाया है।

65 सदस्यीय एमसीसी में बीजेपी उम्मीदवार सुनंदा पलनेत्रा को 26 वोट मिले, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार शांताकुमारी को 22 वोट मिले। मैसूर नगर परिषद में बीजेपी 23 पार्षदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। जबकि कांग्रेस के पास 19 पार्षद और जेडीएस के पास 17 पार्षद हैं। बहुजन समाज पार्टी से एक और पांच निर्दलीय पार्षद हैं।

हालांकि भाजपा परिषद में अकेली सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन वह पहले महापौर और उप महापौर के पद के लिए कांग्रेस और जेडीएस के साथ आने से जीतने में विफल रही थी। महापौर का पद जेडीएस उम्मीदवार के अयोग्य घोषित होने के बाद से खाली हुआ था। पूर्व मेयर ने एक गलत हलफनामा दिया था जिसके कारण कोर्ट ने उसे अयोग्य घोषित कर दिया था।

बुधवार को, इस बात को लेकर अनिश्चितता थी कि क्या गठबंधन पर नेताओं के बीच मतभेदों को लेकर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन जारी रहेगा। आखिरी मिनट तक, इस बात की अटकलें थीं कि क्या गठबंधन अभी भी मौजूद है, लेकिन चुनाव के समय जेडीएस ने अपना प्रत्याशी उतारकर गठबंधन के खत्म होने पर मुहर लगा दी।

भाजपा सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कुछ नेताओं ने बुधवार को जेडीएस नेता, पूर्व मंत्री और विधायक एस आर महेश से संपर्क कर भाजपा उम्मीदवार के समर्थन की मांग की। इसने कथित तौर पर भाजपा के पक्ष में महौल को झुका दिया और पलनेत्रा, जो पिछले चुनाव में महापौर पद से चूक गई थी, भाजपा-जेडीएस गठजोड़ के विफल होने के बाद, नए महापौर के रूप में चुनी गईं।

हालांकि, मैसूर जिले के प्रभारी भाजपा मंत्री एस टी सोमशेखर ने मेयर चुनाव में भाजपा और जेडीएस के बीच एक मौन सहमति की खबरों का खंडन किया। इस साल फरवरी में, महापौर पद के लिए चुनाव ने कांग्रेस में विवाद पैदा कर दिया था, जब एक गुट ने तटस्थ रहने पर जोर दिया, जबकि दूसरे ने पद के लिए जेडीएस के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया था।

गठबंधन में जेडीएस पार्षद रुक्मिणी मेड गौड़ा मैसूर के मेयर चुनी गई थी और कांग्रेस के अनवर बेग डिप्टी मेयर बने। हालांकि, मेयर का चुनाव कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश द्वारा रद्द कर दिया गया था। जिसके बाद दोबारा से चुनाव हुए।