Haryana Assembly Elections: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व आज प्रत्याशियों के नामों को लेकर मंथन करेगा। लोकसभा चुनाव में लगे झटके के बाद भाजपा नेतृत्व विधानसभा चुनाव के लिए सामाजिक समीकरणों को साधने में जुटा है। पार्टी सत्ता विरोधी माहौल की काट के लिए करीब आधे मौजूदा विधायकों के टिकट भी काट सकती है। लोकसभा चुनाव में जिन सांसदों को टिकट नहीं मिला था। उनके नाम पर पार्टी विचार कर रही है।

हिंदुस्तान ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भाजपा अपनी अंदरूनी सर्वे पर मौजूदा आधे विधायकों के टिकट काटने का मन बनाया है। आज शाम होने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में राज्य की सभी सीटों के लिए नामों पर मंथन होगा। पार्टी पहली सूची में लगभग 50-60 प्रत्याशियों के नाम जारी कर सकती है।

लोकसभा चुनाव नहीं लडीं पूर्व सांसद सुनीत दुग्गल को भी टिकट मिलने की संभावना है। दूसरे दलों से आए आधा दर्जन नेताओं को भी टिकट दिए जा सकते हैं।

बता दें, हरियाणा भाजपा के लिए इस बार का चुनाव काफी अहम है। बीते 10 साल से राज्य में सत्ता में रहने के कारण उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही सामाजिक समीकरणों को साधने का दबाव भी है।

बीजेपी ने 10 साल पहले 2014 में पूर्ण बहुमत से राज्य में सरकार बनाई थी। उसी साल इसके पहले हुए लोकसभा चुनाव में उसने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

2019 में भी पार्टी ने लोकसभा की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं कर सकी। 90 सदस्यीय विधानसभा में उसे 40 सीटें ही मिलीं और उसने जजपा (10) और कुछ निर्दलीय के समर्थन से सरकार बनाई। हालांकि, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही बने रहे थे।

कांग्रेस के साथ हो रहे जाट धुव्रीकरण को रोकने के लिए बीजेपी ने कांग्रेस की पूर्व मंत्री और चौधरी बंसीलाल की बहू किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति को अपने साथ जोड़ा। किरण को भाजपा ने राज्यसभा का सदस्य भी बनाया। ताकि जाट समुदाय का ध्रुवीकरण कांग्रेस के साथ न हो। राज्य में भाजपा और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरी जजपा ने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी संग गठबंधन किया है।

बीजेपी की बीते दो चुनावों से गैर जाट ध्रुवीकरण की राजनीति रही है। अब हालात बदले हैं। लोकसभा चुनाव में यह रणनीति पूरी तरह सफल नहीं रही। दलित व अन्य समुदायों ने भी कांग्रेस का साथ दिया था। ऐसे में बीजेपी एक बार जाट समुदाय को साधने के साथ गैर जाट समुदाय का भी साथ बरकरार रखने की कोशिश में है। लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी ने मनोहर लाल खट्ट की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंक्षी बनाया और जजपा से भी नाता टूट गया।