विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया है कि बिजली वितरण कंपनियों से सरकार की मिलीभगत के कारण बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली नहीं मिल पा रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार चाहती तो बिजली कंपनियों की ओर से उपभोक्ताओं को भेजे जाने वाले बिल में लगभग 20 फीसद की कमी हो सकती थी। दिल्ली सरकार सिर्फ दिखावे के लिए बिजली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की धमकी देती रहती है।

अंदरखाने दोनों की मिलीभगत है। इसका ताजा उदाहरण यह है कि बिजली कंपनियां ‘पावर परचेज एडजस्टमेंट चार्जेज’ के नाम से हर तीसरे महीने बिजली के दाम बढ़ाने के लिए दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) को प्रतिवेदन देती थीं। डीईआरसी बिजली कंपनियों के दावों के अनुसार हर तीसरे महीने बिजली के दाम चार फीसद से लेकर 14 फीसद तक बढ़ा देता था।

केंद्र सरकार की कोयले से चलने वाले बिजली उत्पादन संयंत्रों को हतोत्साहित करने की नीति के कारण एनटीपीसी दिल्ली की तीनों बिजली कंपनियों को जो बिजली 4.3 रुपया प्रति यूनिट के दर से बेचता था, अब उसके दाम 3.8 रुपए प्रति यूनिट कम कर दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त एनटीपीसी ने अपने थर्मल पावर प्लांटों में विद्युत उत्पादन की लागत में लगभग 14 फीसद की कमी की है। इस कारण दिल्ली के उपभोक्ताओं को लगभग 20 फीसद कम दामों पर बिजली उपलब्ध कराई जानी चाहिए, लेकिन बिजली कंपनियां अभी भी महंगे दामों पर बिजली बेच रही हैं।

दिल्ली की जनता का आर्थिक दोहन करने के लिए बिजली कंपनियों ने डीईआरसी को पावर परचेज एडजस्टमेंट चार्जेज का तिमाही प्रतिवेदन अभी तक नहीं दिया है। दिल्ली सरकार अगर जनता का भला चाहती तो वो बिजली कंपनियों को नोटिस भेजकर डीईआरसी में प्रतिवेदन देने के लिए मजबूर कर सकती थी। सरकार ने ऐसा नहीं किया। बिजली कंपनियों ने प्रतिवेदन न देने के पीछे बहाना बनाया है कि अभी तक डीईआरसी का चेयरमैन नियुक्त नहीं हुआ है, एक सदस्य की सीट भी खाली है। डीईआरसी में सिर्फ एक ही सदस्य कार्यरत है ।