2014 आम चुनाव के बाद से मोदी लहर के घटते असर के बीच पश्चिम बंगाल बीजेपी की अल्पसंख्यक ईकाई के अध्यक्ष शकील अंसारी का साथ छोड़ना पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकता है। प्रदेश में पहले चरण के चुनाव होने में अब 20 दिन से भी कम वक्त बचा है। शकील अंसारी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को महज शोपीस बनाकर छोड़ दिया है। अंसारी के मुताबिक, पार्टी की ओर से अब तक घोषित किए गए 52 उम्मीदवारों में एक भी मुस्लिम नहीं है। बीरभूम जिले स्थित लाभपुर के मुस्लिम बीजेपी कार्यकर्ता इस मुद्दे पर प्रदर्शन करने वाले हैं। इन कार्यकर्ताओं ने मांगें पूरी न होने की दशा में एक साथ पार्टी छोड़ने की धमकी दी है।
बीजेपी को अगर इस विधानसभा चुनाव में कुछ बेहतर करना है तो वह मुस्लिम आबादी को नजरअंदाज नहीं कर सकती। अल्पसंख्यकों के 30 प्रतिशत वोटों में 28 फीसदी हिस्सेदारी मुसलमानों की है। मुसलमानों का विश्वास हासिल करने के लिए बीजेपी के लिए सबसे आसान और सीधा रास्ता यही है कि पार्टी उन्हें कम से कम राज्य कमेटियों के अहम पदों पर नियुक्त करे। कुछ वैसे ही जैसे कि पार्टी ने केंद्र में मुख्तार अब्बास नकवी, शाहनवाज हुसैन और एमजे अकबर को जगह दी है। बीजेपी लीडर्स भले ही ‘मुसलमान भाइयों’ के हितों की बात करें लेकिन पार्टी की राज्य ईकाई ने कभी भी मुस्लिम प्रवक्ता की नियुक्ति नहीं की है।
जहां तक राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी की बात है, ‘मुस्लिम तुष्टिकरण से जुड़ी योजनाएं लाने’ और विपक्ष की तीखी आलोचना के बावजूद वे मुस्लिम वोटों को लेकर गंभीर नजर आती हैं। चुनाव से ऐन पहले, उन्होंने राज्य के प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं से गतिरोध दूर कर लिया है। यह भी कहा जा रहा है कि टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर लोगों से तृणमूल के लिए वोट करने की अपील की थी। ऐसे में बीजेपी के लिए यह किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। पार्टी को सबसे पहले तो मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम कैंडिडेट्स खड़े करने चाहिए। हालांकि, पार्टी इस विधानसभा चुनाव को भूलकर 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी भी कर सकती है, जैसा कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी हालिया दौरे में संकेत भी दिया था।