विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की सरकार की घोषणा को दिल्ली के 60 लाख से ज्यादा मजदूरों के साथ धोखा बताया है। उन्होंने कहा कि इसका लाभ मजदूरों को नहीं मिलने वाला क्योंकि सरकार ने बढ़ाई गई न्यूनतम मजदूरी की दरों को लागू करने के लिए कोई प्रशासनिक व्यवस्था ही तैयार नहीं की है। गुप्ता ने कहा कि श्रम दिवस यानी 1 मई को दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय ने न्यूनतम मजदूरी की दरें बढ़ाने के साथ ही श्रमिकों के हित के लिए कई घोषणाएं की थीं, लेकिन उनमें से किसी भी योजना पर अमल नहीं हुआ है। सच तो यह है कि दिल्ली में मजदूरी की पुरानी दरें भी नहीं दी जा रही हैं। यहां पुरुष मजदूरों को लगभग 6,000 रुपए मासिक और महिला मजदूरों को 5,000 रुपए मासिक वेतन मिल रहा है। 10 फीसद मजदूरों को भी उनके नियोक्ता न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं कर रहे हैं। गुप्ता ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि वे दिल्ली के 60 लाख मजदूरों की वास्तविक दशा का पता लगाने के लिए हाई कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाएं ताकि मजदूरों की दुर्दशा की असली तस्वीर सामने आ सके।

गुप्ता ने बताया कि दिल्ली के श्रम विभाग में 1973 में 570 कर्मचारी व अधिकारी तैनात थे, जिनकी संख्या घटकर 170 हो गई है। श्रमिकों के हित के लिए लगभग 15 प्रमुख कानून मौजूद हैं लेकिन उनको लागू कराने के लिए दिल्ली सरकार के पास सिर्फ एक दर्जन निरीक्षक हैं। उन्होंने पूछा कि क्या दिल्ली सरकार इतने कम निरीक्षकों से सभी कानून लागू करवा सकती है? इतने कम निरीक्षक दिल्ली की लगभग सवा दो लाख फैक्टरियों का नियमानुसार निरीक्षण कर ही नहीं सकते। अगर सच में सभी फैक्टरी मालिक कानून का नियमानुसार पालन कर रहे हैं तो दिल्ली में तो रामराज्य आ गया है। गुप्ता ने कहा कि दिल्ली के 60 लाख मजदूरों में से ज्यादातर को श्रम कानून, जीविका का सम्मानजनक स्तर, ईएसआइ कानून, प्रोविडेंट फंड, दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य बीमा, परिवार का सामूहिक बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बच्चों के लिए क्रच, खेल का मैदान, आवासीय कालोनी आदि की सुविधाएं ही नहीं मिल रही हैं। यहां के मजदूर झुग्गी बस्तियों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।