बंगाल केंद्र सरकार के केंद्र में है। वहां के लोगों ने भाजपा को विकल्प के तौर पर चुन लिया है। लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी दलों, खासकर वाममोर्चा के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने अपना वोट बिखरने नहीं दिया। आगे के लिए केंद्र में सत्ता की दूसरी पारी का आगाज कर रही भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के जरिए बंगाल को बड़ा संकेत दिया है। राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए लोगों के परिजनों को बुलाया गया। दूसरे, केंद्रीय मंत्रिमंडल में बंगाल को अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व दिया गया।

दरअसल, भाजपा को लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में अपनी बरसों की मेहनत की फसल काटने को मिली। राज्य में सत्ताधारी पार्टी तृणमूल के सामने लोगों ने भाजपा को विकल्प मानना शुरू किया है। यह संकेत साफ है और भाजपा नेतृत्व ने इसे पढ़ लिया है। यही कारण है कि 2021 में पश्चिम बंगाल की बादशाहत के लिए चल रहे मंथन में भाजपा ने अपने घोड़े खोल दिए हैं-तृणमूल कांग्रेस के असंतुष्टों को पार्टी में ‘रंगारंग स्वागत’ करने से लेकर हिंसा पीड़ितों के परिजनों को दिल्ली बुलाकर, प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण में शामिल कराकर सम्मानित किए जाने तक। लोकसभा चुनाव के नतीजों से तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है कि 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुकाबला जोरदार होगा। लोकसभा के अंतर्गत आनेवाले विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त के आंकड़ों के हिसाब से तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की 294 सीटों में से 164 पर जीत हासिल की है। लोकसभा सीटों के हिसाब से यह आंकड़ा 22 है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 18 सीटें जीती हैं। पार्टी ने विधानसभा की 121 सीटों पर विजय हासिल की है।

महानगर कोलकाता की प्रमुख पांच सीटों- कोलकाता दक्षिण, कोलकाता उत्तर, बारासात और दमदम में तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली है, लेकिन इनकी प्रमुख पांच विधानसभाओं में भाजपा ने जीत हासिल की है। रासबिहारी, चौरंगी, विधाननगर, राजारहाट-गोपालपुर और हाबरा की सीटें ऐसी हैं, जहां ममता बनर्जी मंत्रिमंडल के कद्दावर मंत्रियों को मुंह की खानी पड़ी है। बंगाल के ऊर्जा मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय, दमकल मंत्री सुजीत बोस, खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक और खेल मंत्री अरूप विश्वास अपने खुद के क्षेत्रों में हार गए। तृणमूल का गढ़ रही हुगली जिले की आरामबाग लोकसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस की अपरूपा पोद्दार महज 1000 वोटों से जीत सकीं। कांग्रेस ने विधानसभा की नौ सीटें जीती हैं और वाममोर्चा को विधानसभा की किसी भी सीट पर बढ़त नहीं मिली है। स्पष्ट है कि 2019 के चुनाव ने बंगाल की राजनीति में कई नए समीकरण गढ़ने शुरू किए हैं। नए समीकरणों की चुनौती निकाय चुनाव से सामने आएगी, जो 2020 में होने हैं। तय है कि भाजपा को कई नगर निकायों में सफलता मिलेगी। प्रतिष्ठित कोलकाता कॉरपोरेशन पर भाजपा की निगाह है। भाजपा की इसकी उम्मीद इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि दक्षिण कोलकाता के उस वार्ड में भाजपा को 449 वोटों की बढ़त मिली है, जिस वार्ड में ममता बनर्जी का आवास है।

नए राजनीतिक समीकरण
बंगाल में नए राजनीतिक समीकरण बने हैं। भाजपा ने बड़ी सावधानी से वहां की मानसिकता को नहीं छेड़ा और अपना आजमाया हुआ एजंडा भी ले आई। बंगाल में वाममोर्चा की राजनीति काफी समय रही और उसका नतीजा रहा कि वहां के लोग उससे काफी हद तक प्रभावित हो गए। तृणमूल ने वामो के आर्थिक सुधारों को नहीं छेड़ा। भाजपा ने जमीन पर तृणमूल कार्यकर्ताओं के हाथों मार खा रहे वाम और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ खड़े होकर उन्हें मिला लिया। वामो और कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ता भाजपा के जय श्रीराम का नारा लगाने लगे। मुसलिम बहुल इलाके मालदा में भाजपा ने एक सीट जीती और दूसरी को वह सिर्फ 8222 वोटों से हार गई। यहां हिंदुओं की आबादी 48 फीसद है और मालदा में भाजपा को 36 फीसद वोट मिले। दरअसल, भाजपा के फायदे का सबसे बड़ा कारण था वामो वोटों का शिफ्ट होना। वामो के वोट जो 2014 में 30 फीसद थे, वो 2019 चुनावों में छह फीसद ही रह गए। बाकी वोट भाजपा के खाते में जुड़े।

नए विकल्प का उभार
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 मई को बंगाल के बशीरहाट में बांग्ला में नारा लगाया था- उनीशेई साफ (2019 में ही साफ)। नरेंद्र मोदी के नारे पर वहां मौजूद भीड़ ने पूरे दमदार तरीके से जयघोष करते हुए प्रतिक्रिया दी थी। यह नए विकल्प के सामने आने का साफ संकेत था। बंगाल की राजनीतिक परिपाटी रही है कि विकल्प दिखने पर वहां के लोग सत्ता बदल देते हैं। बंगाल में सत्ता विरोधी लहर के मिजाज को भांपते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने डेढ़ साल पहले बंगाल के विजय अभियान की अपनी योजना बनाई थी। उनकी योजना में संगठन को अंदरूनी रूप से मजबूत करना शामिल था। इसके साथ ही तृणमूल के नंबर दो रहे मुकुल रॉय जैसे नेताओं को भाजपा में ले आना और जमीन पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना था। इससे वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार का कहना है, ‘इस बार हमें कम से कम पांच से छह फीसद मुसलिम वोट भी मिले’। स्थिति यह है कि बंगाल से तृणमूल के जो विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हुए हैं, उनमें मुसलिम विधायक भी हैं। भाजपा का दामन थामने वाले विधायक मनीरुल इसलाम पुरुलिया के प्रभावी नेता माने जाते हैं। बाहुबली छवि वाले मनीरुल माकपा में थे। वहां से तृणमूल और अब भाजपा में। उनके साथ कई मुसलिम नेता भाजपा में पहुंच गए हैं।

सबक सिखाने का मौका
भाजपा नेता शिशिर बाजोरिया कहते हैं कि तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक पतन का दौर एक साल पहले हुए पंचायत चुनावों से ही शुरू हो गया था जब पार्टी के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा कि उन्होंने 35 फीसद लोगों को वोट नहीं डालने दिया। ये 35 फीसद लोग तृणमूल कांग्रेस को सबक सिखाने का मौका खोज रहे थे। पंचायत चुनाव राज्य के प्रशानिक अमले की देखरेख में होते हैं जबकि लोकसभा चुनाव सीधे तौर पर भारत के चुनाव आयोग की देखरेख में। इस बार इन 35 फीसद लोगों ने भाजपा को बंगाल की राजनीति में बड़ा खिलाड़ी बना दिया।

‘हमें मिला शानदार जनादेश’
भाजपा को बंगाल में लगभग 41 फीसद वोट मिले हैं। जबकि, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को 43 फीसद। एक जमाने में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के दाएं हाथ रहे भाजपा नेता मुकुल रॉय और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष को बंगाल की राजनीतिक इंजीनियरिंग का शिल्पकार माना जा रहा है। मुकुल रॉय के मुताबिक, ‘सरकार ने शासन करने के अपने नैतिक अधिकार को खो दिया है। बंगाल में भाजपा अगले कुछ दिनों में महाविजय रैली के आयोजन की तैयारी कर रही है। हमें इस बारे में अमित शाह की मंजूरी मिल चुकी है।’ बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है, ‘हम तृणमूल कांग्रेस से नहीं डरते। हमें एक शानदार जनादेश मिला है।’ बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को उत्तर बंगाल और जंगलमहल ने नकार दिया।