नीतीश राज में बिहार की सड़कों की दो स्थिति है। एक सरकार की ओर से सड़कें चकाचक होने का दावा और दूसरी ओर गड्ढे वाली सड़कों को लेकर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का गुस्सा। लेकिन इन सब से इतर भागलपुर की स्थिति कुछ ऐसी है कि यहां आप पता नहीं लगा पाएंगे कि सड़क कहां है और गड्ढे कहां ? दरअसल हम बात कर रहे हैं कहलगांव से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर पीरपैंती की। यहां की सड़कों की स्थिति बद से बदतर है। यही सड़क एनएच-80 से भी जोड़ती है।
यह हाल यहां तब है, जब भागलपुर को स्मार्ट सिटी बनाने की बात चल रही है। यहां बाकी परियोजनाएं तो दूर की बात है। सहूलियत से चलने के लिए अच्छी सड़कें ही नहीं है। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लक्ष्य है कि सड़क के रास्ते बिहार के किसी भी कोने से पटना 5 घंटे में पहुंचाना। मगर यहां तो पीरपैंती से भागलपुर करीब 50 किलोमीटर सफर में ही चार घंटे तो लगते ही है साथ ही दम भी निकल जाता है। कहलगांव ट्रक मालिक एसोसिएशन के अध्यक्ष कहते हैं कि व्यावसायिक परिवहन ऐसी सड़कों पर चलाना हर तरह से जोखिम भरा काम है। मजबूर होकर बेमियादी हड़ताल पर जाना पड़ेगा।
बीते साल मार्च में मुख्यमंत्री ने अपने भागलपुर दौरे के दौरान सड़क निर्माण महकमा (आरसीडी) के इंजीनियरों को इस बाबत खास हिदायतें दी थी और बिना देरी के सड़कों की हालत सुधारने के कारगर उपाय करने को कहा था। मगर इन्हें इसका कोई असर नहीं हुआ। नतीजतन सड़कों पर जगह जगह बड़े-बड़े गड्ढे पड़े हैं। बारिश के मौसम की वजह से उनमें लबालब पानी भरा है। ऐसी हालत देख सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया जा रहा है कि सरकार ने हरेक घर के सामने स्विमिंग पुल बना दिया है। अब बस नहाने का मजा लीजिए।
वहीं एनएच-80 के एक अधिकारी ने बताया कि बिहार में एनएच की सड़कों के रखरखाव की जवाबदेही राज्य सड़क निर्माण विभाग की है। इन दोनों महकमा की खींचातानी में सड़क का बंटाधार और आम नागरिक बेहाल है।
भागलपुर से पीरपैंती सड़क व्यापारिक आर्थिक और सामाजिक नजरिए से काफी मायने रखती है। इस होकर झारखंड में प्रवेश किया जा सकता है। पश्चिम बंगाल की सीमा ही नहीं बांग्ला देश की सीमा भी लगती है। कहलगांव से पीरपैंती सड़क पर सालों भर पानी जमा रहने की वजह से छड़ सीमेंट कंक्रीट की सड़क बनाने की योजना बनी थी, लेकिन इंजीनियरों और अफसरों का दिल दिमाग एक न होने की वजह से यह धरातल पर नहीं उतर सका। बाद में अड़ंगेबाजी में पड़ कर यह मामला फाइल में दफन हो गया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता विजय सिंह प्रमुख का कहना है कि 2005 से ही यह सड़क बनते-बनते ही टूट जाती है। इस परियोजना के लिए अब तक करोड़ों रूपए खर्च किए जा चुके हैं। फिर भी सड़क टूटी की टूटी है। कई दफा आंदोलन किया गया। मगर सब बेकार रहा। यदि यह सच है कि करोड़ों खर्च कर भी सड़क टिकती नहीं, तो उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है। आखिर इस खेल का पैसा किसके पेट में जा रहा है।
