सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाई कोर्ट के समक्ष तथ्य नहीं रखने के लिए बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में राजद नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन को जमानत दी थी। नीतीश कुमार सरकार के वकील से शीर्ष अदालत ने कड़े सवाल किए और शहाबुद्दीन के खिलाफ मामले में संजीदगी नहीं दिखाने पर उन्हें फटकार लगाई। नीतीश सरकार में लालू यादव की पार्टी राजद भी सहयोगी दल है। शहाबुद्दीन को लालू का खास माना जाता है।

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय के पीठ ने कहा, क्यों आपने उसकी रिहाई के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया। क्या उसके जमानत पाने तक आप सोए हुए थे। यह एक विचित्र मामला है। लेकिन सवाल है कि यह अनोखापन किसके इशारे पर किया गया है और कौन इसके पीछे है। पीठ ने कहा, आपने 45 मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत दिए जाने को चुनौती क्यों नहीं दी। क्यों उसके जेल से बाहर आने के बाद ही आपको यह महसूस हुआ। अगर सब कुछ निष्पक्ष था, तो क्यों यह मामला हमारे पास आया।

पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करने की मांग की और कहा कि राजद नेता को रिहा करने का हाई कोर्ट का आदेश अनुचित था। हाई कोर्ट ने मामले में प्रासंगिक सामग्रियों की अनदेखी की। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट उन्हें जमानत नहीं दे सकता था जब तक कि कोई विशेष कारण या कोई चिकित्सीय जरूरत नहीं हो। वरिष्ठ अधिवक्ता ने माना कि मामले में राज्य सरकार की तरफ से विसंगतियां हुईं। इस पर पीठ ने कहा, हम आपकी कठिनाई समझ सकते हैं और सिर्फ यही कह सकते हैं कि हम सब कुछ समझते हैं। द्विवेदी ने कहा, मैं विसंगतियों की बात मानता हूं। मैं राज्य सरकार के कृत्यों को किसी तरह से उचित नहीं ठहरा रहा हूं।

हम उस समय पंगु थे। लेकिन मेरी दलील है कि मामले में प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी की गई है। पीठ ने तब उनसे पूछा, आप क्यों पंगु होंगे। आप राज्य हैं। आपके वकील का यह कर्तव्य है कि वह हाई कोर्ट को मामले के सही तथ्यों के बारे में सूचित करे। आपका यह कर्तव्य था कि हाई कोर्ट को सूचित करें कि शहाबुद्दीन ने सत्र अदालत में पुनरीक्षण याचिका दायर की है। आपने उस वक्त हाई कोर्ट को क्यों नहीं बताया। पीठ ने कहा, हम मामले की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों को देखकर सिर्फ इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि वह किस तरह का व्यक्ति है। पीठ ने कहा, उसके खिलाफ कितने मामले लंबित हैं। वह चार बार सांसद और दो बार विधायक रह चुका है। हम सिर्फ यह सोच रहे हैं कि आम आदमी की सोच क्या है। उसके खिलाफ इतने सारे मामले हैं और इतने सारे जमानत के आदेश हैं। आपने उन जमानत आदेशों को चुनौती दी। सुनवाई अधूरी रही और गुरुवार को जारी रहेगी।

द्विवेदी ने कहा कि शहाबुद्दीन को पहली बार 2005 में जेल भेजा गया था और तब से वह जेल के भीतर से अपराध कर रहा है। उन्होंने कहा कि राजद नेता को ज्यादातर मामलों में बरी कर दिया गया क्योंकि गवाहों ने उसके खिलाफ गवाही देने से मनाकर दिया। उन्होंने कहा, शहाबुद्दीन को जेल में रखने से शायद ही कोई फर्क पड़ा क्योंकि वह जेल के भीतर से अपराध कर रहा था। इसी वजह से उसे सीवान जेल से भागलपुर जेल स्थानांतरित किया गया।
सीवान निवासी चंद्रकेश्वर प्रसाद की तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करने की मांग की और कहा कि उसे जमानत पर छोड़ना न्याय का मजाक है। भूषण ने कहा कि एक हिस्ट्रीशीटर को जमानत देकर हाई कोर्ट ने गलती की। उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि है और वह खूंखार अपराधी है। शहाबुद्दीन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाडे ने कहा कि उनका मुवक्किल मीडिया ट्रायल का शिकार है और कहा कि राज्य सरकार को निष्पक्ष होना होगा और व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।