बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 26 मंत्रियों की कैबिनेट बनाने के अगले ही दिन रविवार (30 जुलाई) को एनडीए में असंतोष के स्वर उभरने लगे। सूत्रों के अनुसार आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा इस बात से नाराज हैं कि उनके विधायक सुधांशु शेखर को मंत्री नहीं बनाया गया। वहीं एचएएम (एस) के प्रमुख जीतन राम मांझी भी इस बात से नाराज हैं कि उनके बेटे संतोष सुमन को मंत्री नहीं बनाया गया। दिल्ली में मौजूद मांझी ने एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान के भाई पशुपति पासवान का उदाहरण देते हुए अपने बेटे को मंत्री बनाए जाने की मांग की। रामविलास के भाई न तो एमएलए हैं, न ही एमएलएसी। माना जा रहा है कि रामविलास पासवान ने अपने भाई को मंत्री बनवाने की मंजूरी बीेजपी के केंद्रीय नेतृत्व से ली थी।
सूत्रों के अनुसार कुशवाहा चाहते थे कि उनकी पार्टी के दो नेताओं को बिहार सरकार में मंत्री बनाया जाए लेकिन बीजेपी ने साफ कह दिया कि उनकी और पासवान दोनों की पार्टी के दो-दो विधायक हैं और दोनों के एक-एक नेता ही नीतीश कैबिनेट में मंत्री बन सकते हैं। कुशवाहा बीजेपी नेतृत्व की बात मान गए और अपने विधायक सुधांशु शेखर का नाम आगे बढ़ा दिया लेकिन सीएम नीतीश ने उसे ठुकरा दिया। माना जा रहा है कि नीतीश को इस बात से नाराजगी है कि कुशवाहा उनके एनडीए में आने से नाखुश बताए जा रहे हैं। नीतीश आरएलएसपी एमएलसी संजीव श्याम सिंह को मंत्री बनाने को तैयार थे लेकिन कुशवाहा चाहते थे कि सुधांशु को ही मंत्री बनाया जाए।
हालांकि कुशवाहा ने अभी तक अपनी नाराजगी खुलकर नहीं जाहिर की है लेकिन माना जा रहा है कि वो नीतीश के एनडीए में आने को लेकर सहज नहीं हैं। नीतीश और वो दोनों का सामाजिक वोटबैंक एक ही माना जाता है। एक सूत्र ने कहा, “नीतीश के आने के बाद एनडीए में कुशवाहा की वो हैसियत नहीं रहेगी जो पहले थी। कुशवाहा को एक बार फिर से एनडीए में अपनी स्थिति आंकनी होगी और अगले कुछ महीनों में पता चलेगा कि वो क्या करते हैं।”
कहा जा रहा है कि बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी अपने बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनवाना चाहते थे लेकिन बीजेपी ने साफ मना कर दिया क्योंकि इसके लिए सुमन को एमएलएसी बनाना पड़ता। नाराज मांझी तुरंत ही बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व से बात करने के लिए दिल्ली रवाना हो गए। सूत्रों के अनुसार अधिक से अधिक मांझी को कुछ समय बाद कहीं का राज्यपाल बनाया जा सकता है। एक बीजेपी नेता ने कहा, “बीेजेपी पिता और पुत्र दोनों को ही पद नहीं दे सकती। अगर 2015 के विधान चुनाव में उन्होंने अपनी ताकत दिखायी होती तो बात अलग होती।”