भारतीय जनता पार्टी के नायक और कभी कर्ताधर्ता रहे सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से बिहार में उनके चाहने वाले भी दु:खी हैं। भाजपा सांसद और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने तो खुलकर अपना क्षोभ जाहिर भी किया। दरअसल, आडवाणी को चमकाने में बिहार का भी बड़ा योगदान रहा है। चुनाव प्रचार का मामला हो या उनकी राम रथ यात्रा हो। आडवाणी बिहार जरूर आए। उनकी राम रथ यात्रा को समस्तीपुर में रोककर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने सियासी भूचाल ला दिया था। यह बात 23 अक्तूबर 1990 की है। उन्हें गिरफ्तार कर दुमका के मसानजोड़ डाकबंगला में नजरबंद कर दिया गया था। इन्हें गिरफ्तार करवानेवाले आईएएस अधिकारी आरके सिंह थे, जो फिलहाल बिहार के आरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद हैं। मसलन, भाजपा ने अपने नायक को गिरफ्तार करने का उन्हें यह तोहफा दिया है।

आडवाणी ने 1990 में राम रथ यात्रा, 1991 में जन जागरण यात्रा, 1997 में स्वर्ण जयंती रथ यात्रा मुख्य तौर पर की थीं। जन जागरण यात्रा के दौरान उनका बंगाल से बिहार में प्रवेश गिरिडीह में हुआ था और स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का बिहार आगमन पूर्णिया में हुआ था। बिहार में प्रवेश करते ही आडवाणी प्रदेश की लालू सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लेते थे। अब वे तो मौन हैं लेकिन बिहार में भाजपा का मुख्य मुद्दा आज भी लालू प्रसाद और उनका परिवार ही है, जो 2019 के मिशन में महारोड़ा है। अब समय ने ऐसी करवट ली है कि आडवाणी को गिरफ्तार कराने वाले लालू यादव भी उनके लिए नरम रुख रखने लगे हैं।

1990-2000 के दशक में अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी के लोग फैन थे। अब यह तिकड़ी दरकिनार है। इनकी जगह अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ले ली है। भाजपा के भागलपुर नगर अध्यक्ष अभय कुमार घोष, भाजपा प्रदेश व्यावसायिक मंच के संजीव कुमार शर्मा कहते हैं, “यह ठीक है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ही मुख्य रणनीतिकार थी, मगर उनके (अटल-आडवाणी-जोशी) समर्पण को यूं ही नहीं भुला दिया जाना चाहिए।” भागलपुर के व्यापारी मुरारीलाल शर्मा, शिवरतन झुनझुनवाला, महावीर प्रसाद सरीखे भाजपा के कट्टर समर्थक बोलने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते। इन्हें उम्मीद थी कि लालकृष्ण आडवाणी को एनडीए का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया जाएगा लेकिन रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा होने के बाद से ही ये लोग मायूस हैं। इनका कहना है कि आडवाणी ने हमेशा कश्मीर समस्या का मुद्दा उठाया। इसी का नतीजा है कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा मजबूत हुई और आज महबूबा के साथ मिलकर सत्तासीन है। अब स्थिति-परिस्थिति जो भी बदली हो लेकिन यह तय है कि आडवाणी ने इन यात्राओं के जरिए न केवल हजारों किलोमीटर की यात्राएं की हैं बल्कि भारतीय जनता पार्टी को गांव-गांव तक जनमानस के मन में बैठाया है। इसके बावजूद उन्हें इस कदर राजनीतिक सफर में अलग-थलग कर देना पार्टी के पुराने वफादारों को खटक रहा है। वो कहते हैं कि आडवाणी को ऐसा सिला मिलेगा, यह सोचा भी नहीं था।