बैसाख का महीना है और बिहार में सूरज आसमान से आग बरसा रहा है। लिहाजा, पारा 41-42 डिग्री छूते ही पीने के पानी का संकट गहराने लगा है। पूरे राज्य में करोड़ों खर्च कर सुशासन बाबू के सात निश्चय में एक हर घर नल, घर-घर जल योजना फेल होने लगी है। लोग सड़कों पर पानी के लिए परेशान हैं। इसके मद्देनजर राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने जिलों के डीएम से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात की और उन्हें हर हाल में पानी की दिक्कत दूर करने की हिदायत दी है। मुख्य सचिव ने जिलाधिकारियों को चापाकल दुरूस्त कराने, पाइप बिछाने और जरूरी हो तो टैंकर से पानी भिजवाने का इंतजाम करने को कहा है लेकिन इन सब से हालात काबू में आना मुश्किल लगता है। भागलपुर के गांव में तो भू-जल का स्तर 70 फीट पर चला गया है।
दरअसल, सूबे में भू-जल स्तर बीते चार महीने में सात फीट नीचे चला गया है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण (पीएचईडी) विभाग ने मार्च महीने में राज्य के सभी ब्लॉक से नमूने के तौर पर पांच-पांच चापाकलों के भूजल स्तर की हफ्तावार जांच कराई, जिससे पता चला कि पटना में ही जलस्तर 28 फीट नीचे चला गया है जबकि दिसंबर 2016 में यह साढ़े 20 फीट पर था। जहानाबाद, बक्सर, समस्तीपुर, बेगूसराय, नवादा, बिहारशरीफ में भी 5 से 7 फीट जलस्तर गिरने के संकेत मिले हैं और पानी के लिए अभी से हाहाकार मचा है। यह हाल अभी है जबकि अभी तो गर्मी ने अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू ही किया है। मई और जून महीने की तपिश तो बाकी है।
भागलपुर के कजरैली पंचायत के दराधी गांव के करीब 400 घरों में पानी की आपूर्ति बंद हो गई है। यहां हर घर नल योजना के तहत बोरिंग कराकर 400 घरों में मुफ्त में पानी का कनेक्शन दिया गया था लेकिन गर्मी की वजह से जलस्तर काफी नीचे जाने से बोरिंग फेल हो गई। पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता रंजीत कुमार बताते हैं कि ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत बोरिंग कराई गई थी। 35 फीट पर जलस्तर आंकलन कर बोरिंग हुई थी जो पानी का स्तर 70 फीट चला गया। अब अलग से और पाइप डाल बोरिंग चालू करने की योजना बनी है। वाकई हैरत की बात है। इस बोरिंग को कराने में सरकार का 75 लाख रूपए खर्च हुआ है।
इसी तरह भागलपुर के ही हरपुर गांव में 108.38 लाख रुपए खर्च कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है और 450 घरों में मुफ्त पानी आपूर्ति के कनेक्शन दिए गए हैं। सजौर गांव में 202.94 लाख रुपए की लागत से जल मीनार और ट्रीटमेंट प्लांट बना कर 785 घरों को वाटर सप्लाई कनेक्शन मुफ्त दिया गया है। मीरखुर्द गांव में भी 119.45 लाख रूपए खर्च कर वाटर टावर और ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है और 500 घरों में पेयजल के वास्ते पाइप बिछाई गई है। मगर इन योजनाओं पर भी संकट साफ नजर आ रहा है।
शहरी इलाका भी पीने के पानी की किल्लत से अछूता नहीं है। सड़कों के चापाकल सूखे हैं। ज्यादातर घरों की बोरिंग फेल है, जो थोड़े बहुत सक्षम हैं वे नई बोरिंग कराने की फ़िराक में हैं। बोरिंग मिस्त्री के भाव आसमान पर हैं। गोलाघाट के राजेश मिस्त्री के पास बोरिंग के पांच प्लांट हैं पर मई महीने तक बुक है। बोतलबंद पानी पर शहरी आबादी टिकी है मगर पीने के अलावा भी तो पानी चाहिए। बिन पानी सब सुन वाली बात है। नगर निगम का चुनाव सामने है। पांच साल में पानी, सड़क, नाली बनाने के नाम पर सभी ने लूटा। अब फिर घर-घर वोट मांगने में शर्म महसूस नहीं कर रहे। दोष अफसरों पर मढ़ रहे।
सौ बात की एक बात यह है कि बिहार में पानी की किल्लत से सब जूझ रहे हैं। भाजपा नेता नंदकिशोर यादव कहते हैं कि केंद्र सरकार ने ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत हाल 250 करोड़ रुपए प्रदेश सरकार को मुहैया कराए हैं लेकिन बिहार सरकार नाम बदलकर योजना चला रही है। वह भी तरीके से नहीं। तभी राज्य में गर्मी की शुरुआत में ही लोगों को पीने का पानी मयस्सर नहीं हो रहा है। गौर करने की बात यह है कि पटना और भागलपुर गंगा नदी के किनारे बसे हैं। बावजूद इसके गर्मी के शुरूआती दौर से ही जल संकट विकट हो गया है। दिलचस्प बात कि बारिश में बाढ़ की त्रासदी भी इन जिलों के वाशिंदों को झेलनी पड़ती है।

