बिहार में हवाई सेवा के विकास और विस्तार के मामले में भारत सरकार का उड्डयन मंत्रालय एकदम सुस्त है। तभी पटना और गया को छोड़ सूबे का कोई भी शहर हवाई सेवा से जुड़ नहीं पाया है। मुजफ्फरपुर और भागलपुर में तो यह मांग सालों पुरानी है। और तो और भागलपुर स्मार्ट सिटी घोषित हो चुकी है और मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी बनने की रेस में है मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। अब भागलपुर हवाई अड्डा शुरू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। यहां की स्वयंसेवी संस्थाएं लगातार प्रधानमंत्री, उड्डयन मंत्रालय, सांसदों और राज्य सरकार को पत्र लिखकर दबाव बना रही है। हालांकि, हवाई सेवा शुरू करने की मांग काफी पुरानी है। यह अलग बात है कि ईस्टर्न बिहार चेंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव संजीव कुमार शर्मा, जीण माता ट्रस्ट के श्रवण कुमार शर्मा, प्रभात केजरीवाल, हरि प्रसाद शर्मा, साहित्यकार शिवकुमार शिव, सज्जन महेशका सरीखे लोगों ने भागलपुर से हवाई सेवा शुरू करने की मांग को लेकर दर्जनों पत्राचार किये और कर रहे हैं। मगर रोना इस बात का है कि हवाई अड्डा फ़िलहाल इस लायक नहीं है। वहां गाय भैंस चराने का अड्डा है। प्रशासनिक अधिकारी बताते हैं कि यहां छोटे विमान किसी तरह उत्तर सकते हैं।

उड्डयन मंत्रालय के मुताबिक रन वे 3600 फीट लंबा और 100 फीट चौड़ा होना चाहिए। साथ ही उसके आसपास सड़क, इमारत, टैक्सी वे, रेस्ट हाउस, पैसेंजर यूनिट बगैरह होना जरूरी है। जो यहां अबतक कुछ भी नहीं है। सन 1982 में इस हवाई अड्डे की अनुमानित लागत एक करोड़ रुपए आंकी गई थी। उस वक़्त खर्च की रकम ज्यादा समझी गई या फिर राज्य सरकार और उड्डयन मंत्रालय ने दिलचस्पी नहीं ली। इसके बाद 1988 में भागवत झा आजाद मुख्यमंत्री बने। उन्होंने तब के कमिश्नर फूलचंद सिंह को फिर से प्रस्ताव भेजने की हिदायत दी। उन्होंने दोबारा आकलन कर हवाई अड्डा दुरुस्त करने की फाइल पटना दौड़ाई। मगर मामला दब गया कुछ नहीं हुआ।

इसके बाद संसद में भी इस मुतल्लिक भागलपुर से चुनकर गए जनप्रतिनिधियों ने आवाज उठाई। सैयद शाहनवाज हुसैन का तो चुनावी वायदा ही था। तत्कालीन डीएम संतोष कुमार मल्ल ने हवाई अड्डे को चहारदीवारी लगवा घेरा। मगर हवाई अड्डे के पश्चिमी और दक्षिणी छोर पर बेतरतीब तरीके से रिहायशी मकान बने हैं। यहां की आबादी ने चहारदीवारी को जगह-जगह से तोड़कर रास्ता बना लिया है। इनके लिए यह सुबह शाम शौच करने का स्थान भी है। नतीजतन बदबू और गंदगी बरकरार है। हवाई अड्डा गाय-भैंस चराने का अड्डा है। और तो और कार और बाइक चलाने की ट्रेनिंग भी लेते अक्सर सुबह लोगों को यहां देखा जा सकता है। असल में यहां देखभाल या साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है। सरकारी हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर मुख्यमंत्री या फिर राज्य के बड़े अफसर को लेकर कभी-कभार हवाई अड्डे पर उतरता है तो हिफाजत दुरुस्त नज़र आती है। उस वक्त जानवरों के झुंड भी भगा दिए जाते हैं।

अलबत्ता हवाई सेवा की मांग जोर पकड़ने की वजह कई हैं। भागलपुर अंग्रेजों के समय से डिविजनल मुख्यालय रहा है। वहां सबौर में कृषि विश्वविद्यालय है, तिलकामांझी विश्वविद्यालय है, जवाहरलाल नेहरू भागलपुर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी है। ज़िले के कहलगांव में एनटीपीसी प्लांट है। पुरातत्व विक्रमशिला विश्वविद्यालय है। समुद्र मंथन के वक्त से विराजमान बौसी पहाड़ है। केंद्रीय विश्वविद्यालय का ऐलान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर गए हैं, लिहाजा वह प्रस्तावित है। इन इलाकों में विदेशी सैलानियों का अक्सर आना-जाना लगा रहता है। साथ ही भागलपुर का सिल्क उद्योग है। यहां का बना कपड़ा विदेशों से अरबों रुपए की विदेशी मुद्रा कमाने में अग्रणी है। विदेश के व्यापारी हवाई सेवा शुरू होने से सीधे भागलपुर आकर सिल्क ख़रीद सकते हैं। गरीब बुनकर बिचौलियों के हाथों का खिलौना बनने से निजात पा सकते हैं और इनकी माली हालत सुधर सकती है। शायद इसीलिए स्वयंसेवी संस्थाओं ने प्रधानमंत्री को सीधे पत्र लिखकर गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया है। वैसे ताजा बजट में छोटे शहरों को भी छोटे जहाज से जोड़ने की योजना है। पता नहीं उसमें बिहार के कौन-कौन शहर हैं या नहीं हैं।