गिरधारी लाल जोशी

बिहार में चुनावी फिजा के कई रंग हैं। टिकटों की मारामारी में दल बदले जा रहे हैं। कइयों की सीट बदली जा रही है। दल बदलने से कइयों ने टिकट पाने में सफलता हासिल की है और कुछ मिलने की उम्मीद में टकटकी लगाए हैं। मगर कई दिग्गजों ने दिल-दिमाग बदला, शागिर्द बदले, दल और झंडे बदले फिर भी गच्चा खा गए। अब उनके राजनैतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा है। जिन्होंने दल नहीं बदला वे बागी बन बैठे। और जो बागी नहीं बने वे भितरघात के फिराक में लगे हैं। वरिष्ठ पत्रकार वृजेन्द्र दुबे कहते हैं इसी का नाम राजनीति है।

बिहार में अभी दो चरणों के चुनाव का पर्चा दाखिल का काम पूरा हुआ है। इसी में नेताओं के रंग बदलने का और अपने दल को आंख दिखाने की बात सामने आ गई है। अभी तो तीसरे चरण का पर्चा दाखिल करने का सिलसिला जारी है। आगे आगे देखिए होता है क्या?

कई भाजपा और जदयू के तो, कई राजद के नेताओं ने अपना दल छोड़ लोजपा का दामन थाम लिया है। कौन किस दल में गया, सही तरीके से पता लगाना भी मुश्किल है। भगदड़ सभी दलों में है। दिग्गजों की सूची में पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा, पूर्व मंत्री रामजतन सिंहा हैं। पूर्व सांसद लवली आनंद और इनके पुत्र ने तो कांग्रेस का पंजा छोड़ राजद की लालटेन थाम ली है। सहरसा से लवली और शिवहर से इनके बेटे चेतन आनंद को राजद का निशान मिल गया है। ये गोपालगंज डीएम की हत्या मामले में जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता आनंद मोहन की पत्नी व बेटा है।

पूर्व मंत्री नरेंद सिंह है। नरेंद्र सिंह हम पार्टी छोड़कर जदयू में आए थे। लेकिन ये अपने दोनों बेटों को टिकट नहीं दिला पाए। मसलन गच्चा खा गए। तो इनके बेटे अजय प्रताप ने रालोसपा का झंडा थाम जमुई में एनडीए की भाजपा उम्मीदवार श्रेयसी सिंह को ललकार रहे हैं। श्रेयसी राष्ट्रमंडल खेल में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक विजेता हैं। और पूर्व मंत्री स्व.दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल देवी की बेटी हैं। पुतुल देवी 2019 चुनाव में बांका लोकसभा सीट जदयू खाते में जाने से भाजपा की बागी बन निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं। बगावत करने पर उन्हें भाजपा ने प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष पद व सदस्यता से छह साल के निलंबित कर दिया था। लेकिन एक साल में ही बेटी की सदस्यता ग्रहण के दौरान वे भाजपा मंच पर नजर आईं।

वहीं जमुई ज़िले की चकाई सीट से नरेंद्र सिंह के दूसरे बेटे सुमित कुमार सिंह को जदयू की टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में कूदे हैं। जदयू ने संजय प्रसाद को चुनाव में उतारा है। सुमित 2015 चुनाव में निर्दलीय ही चुनाव लड़े थे। मगर राजद की सावित्री देवी से 12 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त खा गए थे। बाद में ये जदयू में शामिल हो गए थे। राजद की सावित्री देवी इस दफा फिर चुनाव मैदान में है।

इसी तरह बक्सर ज़िले के डुमरांव सीट से ददन सिंह यादव उर्फ ददन पहलवान जदयू टिकट न मिलने पर बागी बन निर्दलीय ताल ठोंक रहे है। ये निवर्तमान विधायक हैं। अबकी जदयू ने अंजुम आरा को तीर थमाया है। अमरपुर विधानसभा सीट से 2015 का चुनाव हारे भाजपा के मृणाल शेखर इस दफा जदयू के खाते में अमरपुर सीट जाने से निराश हो गए। मगर हौसला नहीं खोया। इन्होंने लोजपा का दामन थाम लिया और चुनाव लड़ रहे है। लोजपा का दामन थामने वाले भाजपा के चर्चित चेहरों में राजेंद्र प्रसाद और रामेश्वर चौरसिया भी है।

भागलपुर सीट से भाजपा के बागी विजय साह इस बार भी निर्दलीय डट गए हैं। तो भाजपा छोड़ लोजपा का झंडा उठाने वाले राजेश वर्मा भी दमखम के साथ मैदान में भाजपा के रोहित पांडे को ललकार रहे हैं। तो हालतक भागलपुर कांग्रेस जिलाध्यक्ष रहे सैयद शाह अली सज्जाद आलम पंजा छोड़ रालोसपा का दामन थाम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजित शर्मा को परेशानी में डाल दिया है। नाथनगर सीट से राजद टिकट पाने की लालसा में जाने-पहचाने चेहरे अशोक कुमार यादव आलोक ने नाराज होकर बसपा के हाथी पर चढ़ गए हैं। इन्होंने बहुजन समाज पार्टी से नामांकन कर दिया है। राजद ने अली अशरफ सिद्दीकी को उम्मीदवार बनाया है। जदयू के एनडीए उम्मीदवार लक्ष्मीकांत मंडल है। ये निवर्तमान विधायक हैं।

भागलपुर के पीरपैंती सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक अमन पासवान निर्दलीय चुनावी अखाड़े में कूदकर भाजपा उम्मीदवार ललन पासवान के लिए मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। वहीं भागलपुर के सांसद अजय मंडल के भाई अनुज मंडल जदयू का टिकट पाने में नाकयाब रहे। तो राष्ट्रवादी कांग्रेस की घड़ी छाप का निशान ला कहलगांव सीट से पर्चा भर दिया। एनडीए के भाजपा उम्मीदवार पवन यादव के लिए सिरदर्द बने हैं।

शरद यादव की बेटी को कांग्रेस ने बिहारीगंज से टिकट देकर समाजवाद का किला ढाह दिया है। वहीं लोजपा सांसद अबू कैसर के बेटे को राजद ने अपनी लालटेन थमाई है। राजद के लोग कहते हैं कि इतना ही नहीं बिहार का मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नीतीश कुमार ने 2015 के जनादेश का अनादर किया। और भाजपा से हाथ मिला लिया। अब तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन छोड़ ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से नाता जोड़ लिया। तो पप्पू यादव ने बसपा से मिल ग्रैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट बना लिया। भाजपा अलग दाव खेल रही है। राजद के तेजस्वी पूरा जोर लगाए हैं। चिराग पासवान भी 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहकर सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश में हैं। पुष्पम प्रिया का सपना भी मुख्यमंत्री बनने का है।

पहली दफा कोरोना महामारी के बीच हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव भले ही नेताओं के बिखराव की कहानी भी कह रहा है। मगर रंग अलग है। और कोरोना का भय किसी को नहीं है। यह अलग बात की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में रत्तीभर भी लापरवाही जोखिम बताकर चिंता जताई है।