हत्या के आरोपी बिहार के सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को पिछले हफ्ते जमानत मिल गई क्योंकि 2014 में हुए राजीव रंजन हत्या मामले में पुलिस अभी तक मुकदमे की कार्रवाई शुरू कराने में विफल रही है। इतना ही नहीं पुलिस ने क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत उनकी रिहाई रुकवाने की कोशिश भी नहीं की जबकि वो पहले ऐसा कर चुकी है। तब सरकारी वकील ने तर्क दिया था कि शहाबुद्दीन को जमानत मिली तो वो मुकदमे की कार्रवाई को प्रभावित कर सकते हैं।
शहाबुद्दीन के रिहा होते ही बिहार सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई। शहाबुद्दीन राजद के सांसद रहे हैं। बिहार में राजद, जदयू और कांग्रेस की गठबंधन सरकार है। शहाबुद्दीन ने जेल से जमानत पर रिहा होने के तत्काल बाद राजद प्रमुख लालू यादव को अपना नेता बताया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शहाबुद्दीन की रिहाई पर बोलते हुए कहा कि उनका जेल में रहना और जमानत पर रिहा होना कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। राजीव रंजन की सीवान में जून 2014 में हत्या कर दी थी लेकिन पुलिस दो सालों में मुकदमे की कार्रवाई भी शुरू नहीं करा सकी है। शहाबुद्दीन केवल जमानत न मिलने के कारण ही जेल में बंद थे। राजीव रंजन हत्या के एक मामले में चश्मदीद गवाह थे। हत्या के उस मामले में शहाबुद्दीन को दिसंबर 2015 में आजीवन कारावास की सजा हुई थी जिसके खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की। इस साल 3 फरवरी को पटना हाई कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत की याचिका खारिज करते हुए सीवान की स्थानीय अदालत से कहा था, “काबिल मजिस्ट्रेट को मामले में पूर्ण समर्पण से तेजी लाने का आदेश दिया जाता है और इस प्रकार ट्रायल कोर्ट के जज को मामले के यथाशीघ्र निपटारे के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए, बेहतर होगा कि सत्र न्यायालय में रिकॉर्ड जमा होने के नौ महीने के अंदर कार्रवाई कर ली जाए।”
20 मई 2016 को शहाबुद्दीन को भागलपुर जेल में स्थानंतरित कर दिया गया था। 7 सितंबर को पटना हाई कोर्ट ने राजीव रोशन मामले में कोई प्रगति न होने के कारण उन्हें जमानते देते हुए कहा, “मुकदमे में कोई प्रगति न होते देखकर और जेल में रखे जाने की अवधि को देखते हुए याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है…” शहाबुद्दीन को जमानत मिलने के बाद भी अगर बिहार पुलिस या बिहार सरकार चाहती तो उनकी रिहाई रुक सकती थी। पुलिस के पास अभी भी क्राइम कंट्रोल एक्ट के तहत उन्हें जेल में रखने का आधार है क्योंकि वो मुकदमे की सुनवाई को प्रभावित कर सकते हैं। पुलिस ऐसा करती तो ये पहली बार नहीं होता। पहले भी पुलिस अदालत में पूर्व राजद सांसद के लंबे आपराधिक रिकॉर्ड का हवाला देकर उनकी रिहाई रुकवा चुकी है। साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए ही पटना हाई कोर्ट को बरकरार रखा था जिसमें सीवान जेल के अंदर मुकदमे की कार्रवाई का आदेश दिया गया था। सीवान के जिला प्रशासन ने तब अदालत में तर्क दिया था कि “….उन्हें आम अदालत में ले जाने से आम शांति भंग हो सकती है और आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा पहुंच सकता है।” सूत्रों के अनुसार सीवान प्रशासन इस बार भी शहाबुद्दीन के खिलाफ सीसीए लगाने के पक्ष में था लेकिन पुलिस मुख्यालय से उसे इस बाबत कोई आदेश नहीं मिला।