बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नजदीकी विश्वासपात्र आरसीपी सिंह Janta Dal (United) यानी कि JDU के नए अध्यक्ष चुने गए हैं। रविवार (27 दिसंबर, 2020) को समाचार एजेंसी ‘PTI-Bhasha’ को पार्टी के एक सीनियर नेता ने बताया, कुमार ने ही पार्टी की टॉप पोस्ट के लिए सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा थी। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान अन्य सदस्यों ने इसका अनुमोदन किया।

साल 2019 में तीन साल के लिए जेडीयू के फिर से अध्यक्ष चुने गए मुख्यमंत्री कुमार ने इसी के साथ राज्यसभा में अपने नेता सिंह के लिए अपना पद त्याग दिया। बता दें कि नौकरशाह से राजनेता बने सिंह अब तक क्षेत्रीय पार्टी के महासचिव थे। आरसीपी सिंह, नीतीश के नंबर-2 माने जाते हैं। रोचक बात है कि जिन दिग्गज नेताओं ने पार्टी की बुनियाद रखने में अहम भूमिका निभाई, उन्हें कुमार ने एक-एक कर के किनारे लगा दिया था। वहीं, अब आरपीसी पर मेहरबानी दिखाई है।

दरअसल, जिसे आज JDU के तौर पर जाना जाता है, उसका गठन साल 2003 में हुआ था। 30 अक्टूबर को। यह दल ‘जनता पार्टी’ से अलग हुए दलों का एकजुट स्वरूप है। शरद यादव के जनता दल, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी के मर्जर के बाद यह बना था। इस दल के कंसल्टेंट और संरक्षक समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज थे।

साल 1994 में जॉर्ज और नीतीश ने समता पार्टी बनाई थी। बिहार में इसका BJP से गठजोड़ हुआ। बाद में राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी NDA में शामिल हुई। वर्ष 2000 में नीतीश एनडीए का सूबे में फेस बनाए गए और सीएम भी बने। 2003 में समता पार्टी का शरद के जेडीयू में विलय हुआ।

जॉर्ज फर्नांडिस: राष्ट्रीय स्तर की सियासत में कुछ बड़ा करने वाले कर्नाटक के पहले राजनेता के तौर पर जॉर्ज की पहचान थी। ट्रेड यूनियन नेता के तौर पर उनके राजनीतिक करिअर की शुरुआत हुई थी।  वह भले ही अब दुनिया में न हों, मगर उन्हें सालों तक विद्रोही या बागी (सकारात्मक पहलू में) के तौर पर जाना जाएगा। कहा जाता है कि उनकी एक आवाज पर गरीब-गुरबा जुट जाते थे। वह अपनी साफगोई और खरा बोलने की आदत के लिए भी जाने जाते थे। 2007 में दोनों के रिश्ते में थोड़ी खटास तब आई, जब नीतीश ने फर्नांडिस को पार्टी चीफ से हटाकर यादव को गद्दी पर बैठाया। बस, इसी घटनाक्रम के बाद उन्हें किनारे लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई। नौबत ऐसी आई कि 2009 में उन्हें LS का टिकट भी न बना। वह भी तब, जब जॉर्ज के साथ से नीतीश बड़े नेता बने। बहरहाल, जॉर्ज निर्दलीय लड़े और हार गए। नीतीश उन्हें देखते-देखते भूल गए और बाद में सेहत के कारण जॉर्ज सार्वजनिक जीवन से भी किनारे हो लिए।

शरद यादव: यादव फिलहाल लोकतांत्रिक जनता दल के नेता हैं। सात बार LS से चुने जा चुके हैं, जबकि तीन बार RS जा चुके हैं। पर JDU की तरफ से। 2003 में जनता दल (यूनाइटेड) के बनने से 2016 तक वह इस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपों के बाद उन्हें राज्यसभा से अयोग्य करार दे दिया गया, जबकि पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बाद में उन्होंने 2018 में “Loktantrik Janata Dal” नाम की नई पार्टी लॉन्च की थी। पर यह कुछ खास कमाल न दिखा सकी। 2019 के आम चुनाव में वह महागठबंधन का हिस्सा रहे। मधेपुरा से चुनाव लड़े, पर हार गए। हालांकि, बीते बिहार विधानसभा चुनाव में वह और उनकी पार्टी कुछ खास एक्टिव नहीं नजर आई। कारण- कमजोर स्वास्थ्य रहा।