बिहार चुनाव के लिए एनडीए ने अपनी सीट शेयरिंग फाइनल कर दी है। रविवार शाम को सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान हो गया। बीजेपी और जेडीयू 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिली हैं, वहीं उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की पार्टी को 6 सीटों से संतोष करना पड़ा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली लोजपा को कैसे 29 सीटें मिल गईं?
यह सवाल ज्यादा जरूरी इसलिए भी है क्योंकि पिछले चुनाव में मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने एनडीए के लिए चार सीटें जीती थीं, लेकिन उन्हें इस बार एक सीट और कम दी गई है। ऐसे में चिराग पर इतना विश्वास क्यों दिखाया गया? जानकार इसके कई कारण मानते हैं, बात यहां सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स या फिर सिर्फ ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद नहीं है, इससे इतर लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन और पिछले विधानसभा इलेक्शन में जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाने वाले जैसे फैक्टर शामिल हैं।
बिहार में पासवान वोटर कितना अहम?
वोटबैंक की राजनीति में दलित वोटों को लेकर विभिन्न दलों के बीच खींचतान होती रहती है। बिहार में दलित वोटरों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता चिराग पासवान को माना जाता है। चिराग पासवान की पकड़ पासनान/दुसाध समुदाय में सबसे ज्यादा है। चिराग के पिता रामविलास पासवान ने इसी दुसाध समुदाय को सशक्त कर बिहार की राजनीति में अपनी अलग जगह बनाई है। 2023 की जातिगत जनगणना बताती है कि बिहार में दुसाध समुदाय की आबादी 5.31 फीसदी के आसपास है, इन्हें 70 से 80 लाख माना जा सकता है। बिहार के दलित समुदाय में दुसाध को सबसे प्रभावशाली जाति के रूप में देखा जाता है।
कितनी सीटों पर प्रभाव रखता दुसाध समुदाय?
हाजीपुर, समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर, और गया कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर दुसाध समुदाय हार-जीत तय कर जाते हैं। जानकारों के मुताबिक बिहार की 20 से 25 सीटें ऐसी हैं जहां पर दुसाध समुदाय की सीधी भागीदारी है और बिना उनके समर्थन किसी भी प्रत्याशी का जीतना मुश्किल है। इसके अलावा 70 से 80 सीटों पर भी दुसाध समुदाय अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। इसी वोटबैंक के दम पर चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए ज्यादा सीटें भी मांग रहे थे। यहां भी हाजीपुर, लालगंज, महनार, रोसड़ा, वारिसनगर, हसनपुर सीट इस वोटबैंक के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है।
2020 में चिराग ने हारकर भी कैसे किया खेल?
चिराग पासवान ने पिछले विधानसभा चुनाव में बगावत करते हुए 137 सीटों अपने उम्मीदवार उतारे थे। वे खुद को मोदी का हनुमान तो बता रहे थे, लेकिन नीतीश कुमार के साथ उनका तालमेल नहीं बैठ रहा था। इस वजह से उन्होंने उन सीटों पर खास फोकस रखा जहां पर जेडीयू को नुकसान पहुंच सकता था। चुनावी परिणाम बता रहे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी ने सीट सिर्फ एक जीती, लेकिन जेडीयू को कई सीटों पर भारी नुकसान दिया। नीचे दी गई टेबल से इसे आसानी से समझा जा सकता है-
क्रम | विधानसभा क्षेत्र | हार हुई पार्टी / उम्मीदवार | LJP ने काटे वोट |
1 | सूर्यगढ़ा | JD(U) | 44,378 |
2 | धोरैया | JD(U) | 4,081 |
3 | जमालपुर | JD(U) के मंत्री | 14,502 |
4 | शेखपुरा | JD(U) | 14,486 |
5 | चेनारी | JD(U) | 17,970 |
6 | करगहर | JD(U) | 16,907 |
7 | शेरघाटी | JD(U) | 24,000 |
8 | अतरी | JD(U) | 25,537 |
9 | मधुबनी | VIP | 15,775 |
लोकसभा चुनाव ने बढ़ाया चिराग का कद
पिछले विधानसभा चुनाव में तो चिराग पासवान की पार्टी ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ सभी 5 सीटों पर जीत दर्ज की।
क्रम | सीट | विजयी उम्मीदवार | कुल प्राप्त वोट | जीत का अंतर |
1 | हाजीपुर | चिराग पासवान | 6,15,718 | 1,70,105 |
2 | समस्तीपुर | शाम्भवी | 5,79,786 | 1,87,251 |
3 | खगड़िया | राजेश वर्मा | 5,38,657 | 1,61,131 |
4 | जमुई | अरुण भारती | 5,09,046 | 1,12,482 |
5 | वैशाली | वीणा देवी | 5,67,043 | 89,634 |
जाति से ऊपर उठ मुद्दों की राजनीति करते चिराग
जानकार मानते हैं कि बिहार में चिराग पासवान की निजी लोकप्रियता भी उन्हें इस चुनाव में एक प्रबल दावेदार बनाती है। ऐसा देखा गया है कि पासवान समुदाय से होने के बावजूद भी चिराग ने खुद को किसी एक जाति तक सीमित नहीं रखा है, वे जातियों की ज्यादा बात भी नहीं करते हैं। उनके मुद्दे तो बिहारी अस्मिता, रोजगार, कानून व्यवस्था हैं। ऐसे में मुद्दों की राजनीति करने में विश्वास रखने वाले चिराग खुद को सिर्फ एक वोटबैंक तक सीमित नहीं रखना चाहते हैं।
इस चुनाव में उन्होंने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया है। वे तो हर जनसभा में बिहार के विकास, उद्योग और रोजगार को प्राथमिकता दे रहे हैं। वे युवा वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में लगे हैं। यह वही वोटबैंक जिस पर तेजस्वी यादव की भी खास नजर है। ऐसे में अगर एनडीए में चिराग को इतनी तवज्जो मिल रही है, फर्स्ट टाइम वोटर, युवा वोटर भी एक बड़ा फैक्टर है।
Gen Z वोटर्स को आकर्षित करेंगे चिराग?
असल में हाल ही में Pixels ने एक पूरे देश में सर्वे किया था, उसमें बताया गया कि कौन से राज्य में कितने Gen Z रहते हैं। नीचे दी गई टेबल से समझते हैं कि किस राज्य में सबसे ज्यादा Gen Z रहते हैं।
रैंक | राज्य | Gen Z आबादी का प्रतिशत (%) |
1 | बिहार | 32.50% |
2 | जम्मू और कश्मीर | 30.80% |
3 | उत्तर प्रदेश | 30.00% |
4 | राजस्थान | 29.20% |
5 | असम | 28.60% |
6 | मध्य प्रदेश | 28.20% |
7 | छत्तीसगढ़ | 27.80% |
8 | हरियाणा | 26.60% |
9 | ओडिशा | 25.90% |
10 | दिल्ली (UT) | 25.80% |
अब ऊपर दी गई टेबल से स्पष्ट है कि चुनावी राज्य बिहार में ही सबसे ज्यादा Gen Z रहते हैं। बड़ी बात यह है कि Gen Z उन लोगों को कहते हैं जो 1997-2012 के बीच जन्मे होते हैं। ऐसे में अगर हम इस रिपोर्ट के अलावा 2011 की जनगणना को आधार माने तो भी बिहार में इस उम्र के लोगों की संख्या 17 से 20 प्रतिशत के आसपास बैठती है। यह बताने के लिए काफी है कि चिराग पासवान आखिर क्यों इस समुदाय को टारगेट कर रहे हैं।
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