बिहार चुनाव में अब ज्यादा वक़्त नहीं बचा है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने गठबंधन के प्रचार में लगे हुए हैं। इस बार वाम दल महागठबंधन में शामिल हैं ऐसे में सीपीआई नेता कन्हैया कुमार उनके लिए प्रचार करते नज़र आएंगे। लेकिन सूत्रों का कहना है कि कुछ राजद नेता नहीं चाहते हैं कि कन्हैया उनके लिए चुनाव प्रचार करें।
इस चुनाव में महागठबंधन कन्हैया कुमार से कुछ इलाकों में प्रचार करवा सकता है। कन्हैया एक बहुत अच्छे वक्ता है ऐसे में वे मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में महागठबंधन उनका इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन सूत्रों की माने तो राजद के कई उम्मीदवारों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे नहीं चाहते कि सीपीआई नेता उनके लिए चुनाव प्रचार करें। साथ ही उनका ‘आज़ादी’ वाला स्लोगन किसी भी स्पीच में नहीं रहेगा।
कन्हैया ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए कहा कि विपक्ष हमेशा बीजेपी, एनडीए के एजेंडे पर प्रतिक्रिया देता है। लेकिन इस बारे हमें ऐसा नहीं करना है। कन्हैया ने कहा “मैं यह लंबे समय से कह रहा हूं, यह सिर्फ बिहार के मौजूदा चुनावों के बारे में नहीं है। हमें भाजपा द्वारा निर्धारित एजेंडे पर प्रतिक्रिया देने के बजाय अपना एजेंडा सेट करना चाहिए। वे एक दिन मंदिर का मुद्दा उठाएंगे, दूसरे दिन मस्जिद का मुद्दा उठाएंगे। भाजपा की रणनीति अंग्रेजों के फूट डालो और राज करो की तरह है।”
सीपीआई नेता ने कहा “इस बार बहुत सारे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं फार्म बिल, श्रम कानून … कई कल्याणकारी योजनाएं रिफॉर्म के नाम पर हटा दी गई हैं। देश की विकास दर नीचे जा रही है, वहीं अंबानी की संपत्ति बढ़ी है। हंगर इंडेक्स में भी भारत का बुरा हाल है। देश का ज़्यादातर पैसा कुछ लोगों के हाथ में है। लोगों को बुनियादी चीजों को खरीदने में परेशानी हो रही है।”
यह पूछे जाने पर कि वाम दलों ने राजद के साथ गठबंधन किया है और महागठबंधन में कांग्रेस भी है, जिस पार्टी पर कन्हैया लगातार हमला करते रहते हैं। इसपर सीपीआई नेता ने कहा ” 1990 में सीपीआई के समर्थन से लालू प्रसाद पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने उस समय सरकार को बाहरी समर्थन दिया था। देखिए, भारतीय राजनीति में, सभी दलों ने किसी न किसी समय कांग्रेस या बीजेपी के साथ गठबंधन करके, सभी के साथ गठबंधन किया है।”
कन्हैया ने कहा “बिहार के संदर्भ में, भाजपा पिछले 15 वर्षों से अप्रत्यक्ष रूप से सरकार चला रही है। एनडीए का चेहरा नीतीश ही हैं। लेकिन यदि आप आर्थिक दृष्टिकोण से देखें, तो सभी नीतियां नव-उदारवादी रही हैं और भाजपा लगातार अपने सांप्रदायिक एजेंडे को हिंदी हार्टलैंड में फैलाने की कोशिश कर रही है।”
