आज के दौर में जहां कोई भी पार्टी किसी भी हाल में चुनाव जीतने की जुगत में होती है और सरकार में हिस्सेदार बनना चाहती हैं। इसके लिए पार्टी प्रमुख और नेता खुद अपने को सांसद और विधायक बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन बिहार में एक ऐसी भी पार्टी है जिसका मुखिया पिछले 27 सालों से दल की कमान संभाले हुए है लेकिन आजतक किसी भी तरह का कोई पद नहीं लिया। पद लेने का अर्थ ये है कि आज तक वो कभी सांसद और विधायक बनने की होड़ में शामिल नहीं हुआ।
ये बात सुनकर आश्चर्य लग रहा होगा कि बिहार जैसे राज्य से पार्टी के दो लोकसभा सांसद हों और 11 विधायक चुनकर विधानसभा जाते हों, उस पार्टी का प्रमुख आजतक किसी पद पर नहीं रहा। जी हां हम बात कर रहे हैं महागठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन की। जिसके महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य हैं। वो साल 1998 से ही माले के महासचिव बने हुए हैं।
बंगाल बोर्ड के टॉपर रहे हैं दीपांकर
पूर्वोत्तर राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी में जन्में दीपाकंर के पिता भारतीय रेलवे में कर्मचारी थे और उनकी तैनाती कोलकाता थी। इस वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई कोलकाता के रामकृष्ण मिशन स्कूल से हुई। यहां पढ़ाई के दौरान वो पश्चिम बंगाल बोर्ड के टॉप रैंकर भी रहे। आगे की पढ़ाई दीपांकर ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता से की। सांख्यिकी से बैचलर (बी.स्टैट) और मास्टर (एम.स्टैट) की उन्होंने डिग्री हासिल की।
दरअसल सांख्यिकी संस्थान में पढ़ाई के दौरान ही दीपांकर लेफ्ट की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने लगे। जिसके बाद दीपांकर ने माले के पूर्व महासचिव रहे ‘विनोद मिश्र’ द्वारा गठन की गई ‘भारतीय पीपुल्स फ्रंट’ के 1982 से 1994 तक महासचिव के रूप में कार्य किया।। इसी बीच दिसंबर 1987 में दीपांकर को माले की केंद्रीय समिति के लिए चुना गया। 1998 में विनोद मिश्रा के निधन के बाद दीपांकर को माले का नया महासचिव चुना गया।
चुनाव न लड़ने की ये हो सकती है वजह
माले के प्रभाव वाले राज्य की बात करें तो बिहार और झारखंड में पार्टी का कैडर देखने को मिलता है। इसी वजह से दीपांकर पर कई बार ये भी आरोप लगता रहा है कि वो मूल रूप से असम के रहने वाले हैं और वो पिछले 27 साल से ऐसी पार्टी के प्रमुख बने हुए हैं जिसका जनाधार बिहार और झारखंड जैसे राज्य में है। यानी की दीपांकर के सांसद या विधायक का चुनाव न लड़ने की एक वजह ये भी हो सकती है कि वो पूर्वोत्तर राज्य के हैं और ऐसे में वो बिहार या झारखंड से चुनाव लड़ते हैं तो वो विरोधी पार्टियों के निशाने पर आ सकते हैं।
सोरेन सरकार का माले कर रही है समर्थन
बात करें उनकी पार्टी माले की तो मौजूदा समय में 2 लोकसभा सांसद और 13 विधायक हैं। आरा और काराकाट लोकसभा से माले के सांसद 2024 में चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। जबकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में माले के 11 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके साथ ही बिहार के बाहर की बात करें तो साल 2024 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में माले के दो विधायक चुने गए। इसके साथ ही झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार में माले भी शामिल है, हालांकि पार्टी के हिस्से में अभी कोई मंत्री पद नहीं है। अगर मौजूदा समय की बात करें तो पार्टी के कुल 2 लोकसभा सांसद और 13 विधायक हैं।

