Bihar Vidhan Sabha Chunav Parinam: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से अप्रत्याशित हैं, लेकिन नीतीश कुमार की वापसी उससे भी अधिक दिलचस्प राजनीतिक कहानी बयां करती है। लगातार 20 साल तक बिहार की राजनीति पर छाए रहने वाले नीतीश कुमार को लेकर पिछले कुछ वर्षों में तरह–तरह की चर्चाएं होने लगी थीं।
2020 के विधानसभा चुनाव में जब जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी, तब उनके राजनीतिक अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे थे। बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी थी और सर्वेक्षणों में भी नीतीश की लोकप्रियता लगातार गिरती दिख रही थी। तेजस्वी यादव को भी भरोसा हो गया था कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री वही बनने वाले हैं। लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने तेजस्वी यादव की उम्मीदों को पंख लगने से पहले ही काट दिया।
2020 में चिराग ही थे जेडीयू की हार का कारण
पिछले पांच वर्षों में जेडीयू ने जमीन पर जो मेहनत की और संगठन को जिस तरह फिर से खड़ा किया, वह इस नतीजे में स्पष्ट दिखता है। 2020 में जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार उसने 85 सीटें जीतकर अपनी दमदार वापसी दर्ज की।
2020 के चुनाव में चिराग पासवान का प्रसिद्ध नारा- भाजपा से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं ने राजनीतिक माहौल सेट कर दिया था। LJP(RV) ने उस चुनाव में 135 उम्मीदवार उतारे थे और उनकी रणनीति जेडीयू के ज़्यादातर उम्मीदवारों को सीधा नुकसान पहुंचाने की थी। बाद के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि जेडीयू की लगभग 34 सीटों पर जेडीयू की हार जितने वोटों से हुई, उससे ज्यादा वोट चिराग की पार्टी ले गई। अगर LJP उन सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारती, तो जेडीयू की सीटें 75 से अधिक हो सकती थीं।
चिराग की एनडीए वापसी, नीतीश को फायदा?
इस चुनाव में चिराग पासवान एनडीए के साथ रहे। उनकी पार्टी को मिले करीब साढ़े 5% वोट सीधे-सीधे एनडीए को ट्रांसफर हुए। इसका लाभ भाजपा, जेडीयू और गठबंधन के अन्य दलों को मिला। जेडीयू की सीटें बढ़ना इसका स्पष्ट संकेत है।
बिहार चुनाव परिणाम
| क्रम | पार्टी का नाम | सीटें जीती | वोट शेयर % |
|---|---|---|---|
| 1 | भारतीय जनता पार्टी (BJP) | 89 | 20.87% |
| 2 | जनता दल (यूनाइटेड) – JD(U) | 85 | 18.91% |
| 3 | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) | 25 | 22.76% |
| 4 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) | 6 | 8.46% |
| 5 | लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) – LJP(RV) | 19 | 5.11% |
| 6 | AIMIM | 5 | 2.07% |
| 7 | हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) – HAMS | 5 | 1.14% |
| 8 | राष्ट्रीय लोक मोर्चा | 4 | 0.97% |
| 9 | निर्दलीय | 9 | 4.66% |
| 10 | CPI (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) (लिबरेशन) | 2 | 3.05% |
| 11 | बहुजन समाज पार्टी (BSP) | 1 | 1.52% |
| 12 | जन सुराज पार्टी (JSP) | 0 | 3.44% |
| 13 | विकासशील इंसान पार्टी (VIP) | 0 | 1.57% |
नीतीश का जातीय जादू कर गया कमाल
नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, जिसकी बिहार में आबादी लगभग 3% है। इसके बावजूद वह 20 वर्षों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने कई बड़ी जातियों- सवर्ण, कुशवाहा, पासवान, मुसहर, मल्लाह आदि में गहरी पैठ बनाई है। ये जातियां किसी एक दल की स्थायी वोटर नहीं रहतीं, लेकिन नीतीश ने इनके बीच स्थायी विश्वास पैदा किया है। इसी ‘साइलेंट वोट बैंक’ ने एक बार फिर उनकी जीत सुनिश्चित की।
जानकारों का कहना है कि भाजपा ने भी जेडीयू के इस स्तर के प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की थी। उन्हें लगा था कि जेडीयू की सीटों में सुधार हो सकता है, लेकिन 101 में से 85 सीटें जीतना अनुमान से कहीं ज़्यादा था। यह सिर्फ मोदी फैक्टर का असर नहीं, बल्कि नीतीश के प्रति भरोसा भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा।
2020 में भले ही नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी, लेकिन अधिक सीटें भाजपा के पास होने के कारण वे राजनीतिक दबाव में थे। इस बार परिणामों ने पूरी तस्वीर बदल दी है- जेडीयू और भाजपा अब बराबरी की स्थिति में हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी नीतीश के पास सुरक्षित है।
महिला वोट: नीतीश की सबसे बड़ी ताकत
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नीतीश कुमार ने महिला वोटरों का विश्वास बड़े स्तर पर जीता है। पहले इसे निर्णायक नहीं माना जाता था, लेकिन पिछले दो चुनावों में महिलाएं नीतीश की सबसे बड़ी सहायक बनी हैं। महिलाओं से जुड़ी कई योजनाएं इस चुनाव में निर्णायक रहीं हैं, कुछ ऐसी हैं जो पिछले पांच सालों से अपना प्रभाव बनाती जा रही थीं। बात चाहे महिला रोजगार योजना की हो, पेंशन लाभ की हो या फिर साइकिल वितरण की, इन सभी योजनाओं ने जमीन पर अपना असर दिखाया है। 2020 में चिराग फैक्टर से नुकसान हुआ था, लेकिन 2025 में एनडीए की एकजुटता ने महिला वोटों को मजबूती से एनडीए के साथ रखा।
ग्रामीण इलाकों में जेडीयू की मजबूत पकड़
भले ही भाजपा की चुनावी मशीनरी ज़्यादा आक्रामक दिखती है, लेकिन जेडीयू का संगठन ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद प्रभावी है।ज्यादा शोर-शराबा न करते हुए भी वह ‘साइलेंट’ तरीके से नतीजों में बड़ा असर डालता है, और इस बार भी वही देखने को मिला।
नीतीश की ‘सुशासन’ छवि जंगलराज पर हावी
बिहार के मतदाताओं के बीच ‘सुशासन बाबू’ वाली नीतीश की छवि अभी भी जीवित है और “जंगलराज” के नरेटिव पर भारी पड़ती है। तेजस्वी यादव ने नौकरियों का वादा खूब किया, युवाओं को लुभाने की कोशिश की, लेकिन अनुभव, प्रशासनिक साख और सुशासन-इन तीनों पर नीतीश को बढ़त मिलती गई। इसीलिए जेडीयू को इस बार जबरदस्त फायदा मिला।
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