सोशल इंजीनियरिंग के दम पर नीतीश कुमार साल 2005 से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। नीतीश कुमार ने बिहार में जिस तरह से जातीय समीकरण बनाकर उन्हें अपने पक्ष में किया है और विकास पुरूष की छवि गढ़ी है, उसकी मिसाल देश में शायद ही कहीं और देखने को मिली हो। लेकिन बेहद कम लोग जानते होंगे कि नीतीश ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत में विधानसभा के दो चुनाव लगातार हारे थे और उसके बाद वह इतने निराश हो गए थे कि राजनीति छोड़कर सरकारी ठेकेदार बनने पर विचार करने लगे थे।

साल 1972 में बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी पटना) से मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी भी की थी लेकिन जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, एसएन सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह जैसे नेताओं के संपर्क में आने के बाद नीतीश कुमार राजनीति के होकर रह गए। साल 1971 में नीतीश कुमार, राम मनोहर लोहिया की समाजवादी युवजन सभा के सदस्य बने।

दरअसल नीतीश कुमार ने साल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर नालंदा जिले की हरनौत सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन नीतीश यह चुनाव हार गए थे। इसके बाद साल 1980 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने एक बार फिर जनता पार्टी (सेक्यूलर) के टिकट पर अपनी किस्मत आजमायी लेकिन इस बार भी वह एक निर्दलीय उम्मीदवार अरुण कुमार सिंह से चुनाव हार गए। लगातार दूसरी हार से नीतीश इतने निराश हुए कि उन्होंने राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया था।

दरअसल नीतीश कुमार उन दिनों कुछ कमा भी नहीं रहे थे तो यही वजह रही कि राजनीति में अपनी दाल ना गलती देख वह सरकारी ठेकेदार बनने के बारे में सोचने लगे थे। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, तभी तो साल 1985 के विधानसभा चुनाव में नीतीश फिर से हरनौत से लोकदल उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और जीत गए। इसके बाद नीतीश राजनीति में सफलता की सीढ़ियां चढ़ते ही चले गए।

नीतीश कुमार अपने राजनैतिक जीवन में 4 बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और 6 बार लोकसभा सांसद रहे हैं। लेकिन 2004 में नीतीश कुमार ने अपना आखिरी चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें नालंदा से जीत हासिल हुई थी लेकिन उसके बाद से नीतीश ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है।

साल 2006 से नीतीश विधान परिषद के सदस्य हैं। चुनाव ना लड़ने के सवाल पर नीतीश ने एक बार कहा था कि वो किसी एक सीट पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहते हैं।

साल 2000 में नीतीश केन्द्र की अटल सरकार में कृषि मंत्री थे। उस दौरान बिहार विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। जिसके बाद जोड़-तोड़ की राजनीति कर नीतीश भाजपा के समर्थन से पहली बार सीएम बने थे लेकिन उनकी सरकार 7 दिन में ही गिर गई। इसके बाद 2005 में नीतीश दूसरी बार बिहार के सीएम बने और उसके बाद से अब तक लगातार राज्य के सीएम हैं। सिर्फ मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच नीतीश की जगह जीतनराम मांझी सीएम रहे।